मुंबई, सात अप्रैल (भाषा) बम्बई उच्च न्यायालय ने बदलापुर में स्कूली बच्चियों से यौन उत्पीड़न के मामले में आरोपी अक्षय शिंदे की हिरासत में मौत के लिए पांच पुलिसकर्मियों के खिलाफ सोमवार को प्राथमिकी दर्ज करने व विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आदेश दिया तथा मामले में ‘अरुचि’ दिखाने के लिए प्रदेश सरकार को फटकार लगाई।
शिंदे की पुलिस वैन में कथित रूप से गोली लगने से मौत हो गयी थी।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि संवैधानिक न्यायालय होने के नाते उच्च न्यायालय मूकदर्शक बना नहीं रह सकता, भले ही मृतक के माता-पिता ने यह क्यों न कहा हो कि वे इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते।
शिंदे के माता-पिता ने दावा किया था कि उनके बेटे को फर्जी मुठभेड़ में मारा गया है।
पीठ ने मामले में प्राथमिकी दर्ज करने के प्रति ‘अरुचि’ को लेकर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि इस तरह की कार्रवाई राज्य की साख और आपराधिक न्याय प्रणाली में आम आदमी के भरोसे को कमजोर करती है।
ठाणे जिले के बदलापुर के एक स्कूल में दो बच्चियों के साथ यौन उत्पीड़न के आरोपी शिंदे की 23 सितंबर, 2024 को पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में गोली लगने से मौत हो गयी थी।
यह घटना उस वक्त हुई थी जब शिंदे को तलोजा जेल से कल्याण ले जाया जा रहा था।
आरोपी के साथ चल रही पुलिस टीम ने दावा किया था कि आरोपी ने पुलिस वैन में मौजूद एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन कर गोली चलाई थी, जिसके बाद पुलिसकर्मियों ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी।
हालांकि, मजिस्ट्रेट जांच रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों की दलील को खारिज कर दिया गया और उन्हें दोषी ठहराया गया।
सरकार ने कहा था कि अलग से प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में केवल निष्कर्ष शामिल हैं और राज्य सीआईडी (अपराध जांच ब्यूरो) पहले से ही शिंदे की मौत की जांच कर रही है।
शिंदे के माता-पिता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर दावा किया था कि फर्जी मुठभेड़ में उनके बेटे की हत्या की गई।
उन्होंने अदालत से मामले की जांच कराने का अनुरोध किया।
हालांकि उन्होंने (माता-पिता ने बाद में कहा कि वे इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं।
अदालत ने कहा था कि मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में राज्य सरकार की अनिच्छा ने माता-पिता को ‘असहाय’ बना दिया है।
पीठ ने सोमवार को मुंबई पुलिस की अपराध शाखा के संयुक्त आयुक्त लखमी गौतम को पुलिस उपायुक्त की निगरानी में मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने और मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया।
अदालत ने कहा, “मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के देखने के बाद हम इस बात से संतुष्ट हैं कि हिरासत में हुई मौत (शिंदे की) की गहन जांच की आवश्यकता है, क्योंकि वह पुलिस द्वारा चलाई गई गोली के कारण घायल हुआ था।”
उच्च न्यायालय ने कहा कि पुलिस अधिकारियों का कर्तव्य है कि वे कानून के प्रावधानों का पालन करें और यह सुनिश्चित करें कि जब प्रथम दृष्टया अपराध का खुलासा हो तो जांच को उसके तार्किक अंजाम तक ले जाया जाए।
पीठ ने कहा, “केवल न्याय किया ही नहीं जाना चाहिए बल्कि न्याय होता हुआ प्रतीत भी होना चाहिए। हमें उम्मीद और भरोसा है कि एसआईटी साजिश का पर्दाफाश करेगी।”
पीठ ने सरकार के वकील अमित देसाई द्वारा अदालत के आदेश पर रोक लगाने के अनुरोध को भी खारिज कर दिया।
अदालत ने इस मामले में आकस्मिक मौत के पहलू की जांच कर रही राज्य सीआईडी को दो दिनों के भीतर मामले से जुड़े सभी कागजात एसआईटी को सौंपने का निर्देश दिया।
भाषा जितेंद्र सुरेश
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