पांच कर्मी मैकग्रेगर से सम्मानित; सीडीएस का ब्रिटिशकालीन मिशन के भारतीयों को सम्मानित करने का आग्रह

Ankit
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नयी दिल्ली, 16 अप्रैल (भाषा)प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल अनिल चौहान ने बुधवार को थिंक टैंक यूएसआई से उन भारतीयों को ‘मैकग्रेगर मेमोरियल मेडल’ से सम्मानित करने पर विचार करने का आग्रह किया, जिन्हें 19वीं सदी में ब्रिटिश राज के दौरान तिब्बत, लद्दाख और अन्य क्षेत्रों में ‘‘रणनीतिक सर्वेक्षण’’ करने के लिए ‘‘मिशन’’ पर भेजा था।


इन स्थानीय खोजकर्ताओं को ‘पंडित’ कहा जाता था और वे भारतीय सर्वेक्षण विभाग के अधीन काम करते थे, तथा उनका उल्लेख कई विद्वानों के कार्यों में मिलता है।

इस अवसर पर 2023 और 2024 के लिए ‘मैकग्रेगर मेमोरियल मेडल’ प्रदान किया गया तथा महान सैनिक नायब सूबेदार चुनी लाल के जीवन पर आधारित पुस्तक ‘ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेव’ का लोकार्पण किया गया। इस किताब को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीआईएससी) के चेयरमैन के पूर्व चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) ने लिखा है।

मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि सशस्त्र बलों के चार व्यक्तियों को बुधवार को दिल्ली में यूएसआई में आयोजित एक कार्यक्रम में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए मैकग्रेगर मेमोरियल मेडल प्रदान किया गया।

वर्ष 2023 के लिए सम्मानित कर्मियों में भारतीय वायुसेना क विंग कमांडर डी पांडा और भारतीय नौसेना के ईए (रि.) राहुल कुमार पांडे शामिल हैं।

भारतीय नौसेना के सीएचईए (आर) राम रतन जाट और भारतीय वायु सेना से सार्जेंट झूमर राम पूनिया को वर्ष 2024 के लिए इस पदक से सम्मानित किया गया।

इसके अलावा, एनआईएमएएस (राष्ट्रीय पर्वतारोहण एवं साहसिक खेल संस्थान) के निदेशक कर्नल रणवीर जामवाल को भी यह पुरस्कार मिला है। हालांकि, एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वे इस कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो सके, क्योंकि वे माउंट कंचनजंगा पर चल रहे अभियान में शामिल हैं।

सीडीएस चौहान ने ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेव नामक पुस्तक का विमोचन करते हुए लेखक और पूर्व चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (सीआईएससी) लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त) की भी सराहना की, जिन्होंने एक सैनिक की व्यक्तिगत उथल-पुथल, विपरीत परिस्थितियों में उसके अडिग संकल्प और अदम्य भावना का जीवंत व हृदयस्पर्शी चित्रण किया है।

उन्होंने कहा कि यह पुस्तक एक वीर सैनिक के प्रति मार्मिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है और पुरुष तथा महिला सैन्य कर्मियों द्वारा की गई निस्वार्थ सेवा की याद दिलाती है।

सीडीएस ने कहा, ‘‘कुछ भारतीयों के प्रयासों को शायद मान्यता नहीं मिली होगी, क्योंकि इनमें से कुछ गतिविधियां मैकग्रेगर पदक की स्थापना से पहले हुई थीं। मैं भारतीय ‘पंडितों’ की बात कर रहा हूं।’’ उन्होंने किशन सिंह, अब्दुल मजीद और शरत चंद्र दास जैसे लोगों के नाम का उल्लेख किया।

उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी लोगों को ब्रिटिश, भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा तिब्बत, लद्दाख और विभिन्न (अन्य) क्षेत्रों में रणनीतिक टोह लेने के लिए एक गुप्त मिशन पर भेजा गया था।’’

सीडीएस ने इन भारतीय खोजकर्ताओं को मान्यता देने की आवश्यकता पर बल दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं यूएसआई से आग्रह करूंगा कि उन्हें यह पदक देने पर विचार किया जाए, हालांकि यह पदक बहुत बाद में शुरू किया गया था। कई भारतीयों ने इससे बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन उन्हें उनके इसी कार्य के लिए सम्मानित किए जाने की जरूरत है।’’

सीडीएस ने अपने संबोधन में पदक के इतिहास और इसके महत्व को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि मैकग्रेगर मेमोरियल मेडल पुरस्कार की शुरुआत तीन जुलाई, 1888 को हुई थी। इस सम्मान को वर्ष 1870 में स्थापित ‘यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया’ के संस्थापक मेजर जनरल सर चार्ल्स मेटकाफ मैकग्रेगर, केसीबी, सीएसआई, सीआईई की स्मृति में प्रदान किया जाता है।’’

मूल रूप से सैन्य जासूसी कार्यों और खोजपूर्ण यात्राओं के कार्यों को सम्मान देने के उद्देश्य से प्रारंभ किये गए इस पदक का दायरा स्वतंत्रता के बाद साल 1986 में सैन्य अन्वेषण अभियानों और साहसिक गतिविधियों को शामिल करने के लिए बढ़ा दिया गया।

इस पुरस्कार के लिए सैन्य टोही कार्यों और जांच-पड़ताल सर्वोपरि मानदंड बने हुए हैं, फिर भी यह सम्मान सशस्त्र बलों, प्रादेशिक सेना, रिजर्व बलों, राष्ट्रीय राइफल्स तथा असम राइफल्स के सभी रैंकों (सेवारत व सेवानिवृत्त) के लिए भी दिया जाता है। आज तक 127 पदक प्रदान किये जा चुके हैं, जिनमें से 103 आजादी से पहले ही दिए गये थे।

मंत्रालय के मुताबिक इस महत्वपूर्ण सम्मान से सम्मानित प्रमुख लोगों में कैप्टन एफई यंगहसबैंड (1890), मेजर जनरल ऑर्डे चार्ल्स विंगेट (1943), मेजर जेडसी बख्शी, वीआरसी (1949), सियाचिन ग्लेशियर में टोही अभियान चलाने वाले कर्नल नरिंदर कुमार (1978-81) और कमांडर दिलीप डोंडे तथा लेफ्टिनेंट कमांडर अभिलाष टॉमी शामिल हैं।

बयान के मुताबिक यह सम्मान सशस्त्र बलों के कार्मिकों को साहसिक कार्य करने और वीरता, दृढ़ता तथा खोज की परंपरा को कायम रखने के लिए प्रेरित एवं प्रोत्साहित करता है।

भाषा धीरज माधव

माधव



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