न्यायालय ने आतंकी मामले में दोषी पाक नागरिक की रिहाई संबंधी याचिका खारिज की

Ankit
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नयी दिल्ली, 22 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने 89 वर्षीय पाकिस्तानी नागरिक और हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी गुलाम नबी की जम्मू-कश्मीर की जेल से रिहाई और अपने देश लौटने के अनुरोध संबंधी याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया।


शीर्ष अदालत ने जम्मू में गणतंत्र दिवस समारोह में 1995 के सिलसिलेवार बम धमाकों से संबंधित एक मामले में नबी को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। धमाकों में आठ लोगों की जान चली गई थी।

सुनवाई शुरू होते ही नबी की ओर से पेश वकील वारिशा फरासत ने न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ को बताया कि याचिकाकर्ता, जिसकी जेल की अवधि 1995 में शुरू हुई थी, तब से लगातार हिरासत में है।

फरासत ने कहा कि जब 2009 में नबी को बरी किया गया तो उसे रिहा करने के बजाय उस पर जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम लगा दिया गया और उसे फिर से हिरासत में ले लिया गया।

वकील ने पीठ से कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को निचली अदालत ने बरी कर दिया था, लेकिन उसे कभी रिहा नहीं किया गया। उसके मामले में उठाई गई मुख्य आपत्ति यह थी कि जम्मू-कश्मीर जेल नियमावली के अनुसार आतंकवादी वारदात के लिए कोई छूट उपलब्ध नहीं है।’’

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता पाकिस्तानी नागरिक है जो बिना किसी दस्तावेज के भारत में घुसपैठ कर आया। मेहता ने कहा कि इस अदालत ने उसे जम्मू में बम विस्फोट करने और आठ निर्दोष लोगों की हत्या करने के लिए दोषी ठहराया।

याचिका पर सवाल उठाते हुए, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका कैसे दायर कर सकता है। मेहता ने कहा, ‘‘वो आतंकी है। जब उन्हें वापस भेजा जाता है, तो उन्हें कभी स्वीकार नहीं किया जाता। अजमल कसाब को उनके देश में कभी स्वीकार नहीं किया गया।’’

नबी की तरफ से पेश वकील ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार इसलिए माफी स्वीकार नहीं कर रही है क्योंकि उसने आतंकी वारदात को अंजाम दिया। वकील ने कहा कि उसके पाकिस्तानी नागरिक होने का मुद्दा ही नहीं है।

मेहता ने दलील का विरोध करते हुए कहा कि आतंकवादी के प्रति दया नहीं दिखाई जा सकती। पीठ ने कहा, ‘‘कसाब के लिए भी सहानुभूति दिखाई गई थी कि उसे फांसी नहीं होनी चाहिए। देश, राष्ट्र, नागरिक की सुरक्षा का कोई मूल्य नहीं है?’’

फरासत ने इसके बाद राजीव गांधी हत्याकांड का हवाला देते हुए कहा कि इस अदालत ने दोषियों को समय से पहले रिहा करने का निर्देश दिया, जबकि अपराध गंभीर और आतंकवादी प्रकृति का था।

पीठ ने हालांकि कहा कि इस मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार की ओर से कोई सिफारिश नहीं की गई है। इसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली और याचिका को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया गया।

पाकिस्तान के सियालकोट जिले के निवासी नबी को 2009 में टाडा कोर्ट ने बरी कर दिया था। हालांकि, एक जुलाई 2015 को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में उसे बरी किए जाने के फैसले को खारिज कर दिया। बाद में 30 सितंबर 2015 को उच्चतम न्यायालय ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई।

भाषा आशीष प्रशांत

प्रशांत



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