(जेमिमा रमन)
दुबई, 14 अप्रैल (भाषा) नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने दुबई में आयोजित ‘वैश्विक न्याय, प्रेम और शांति शिखर सम्मेलन’ के समापन अवसर पर कहा कि निर्णयकर्ताओं और वे जिन लोगों के लिए निर्णय ले रहे हैं, उनके बीच गंभीर अंतर है, और यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है।
उन्होंने 12 और 13 अप्रैल को दुबई में आयोजित सम्मेलन के समापन दिवस पर यह बात कही।
सत्यार्थी ने रविवार को सम्मेलन के इतर ‘पीटीआई-भाषा’ से विशेष बातचीत में यह विचार साझा किए।
रविवार देर शाम आयोजित एक सत्र में सत्यार्थी ने 11 अन्य नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साथ मिलकर सामाजिक परिवर्तन की दिशा में अपने प्रयासों के दौरान नौकरशाही और समाज की उदासीनता से जुड़े अनुभव साझा किए।
उन्होंने कहा, “यह स्थिति गंभीर नैतिक जवाबदेही और जिम्मेदारी की कमी की ओर ले जा रही है। हम कानूनी जवाबदेही, नियमों और कानूनों की बात करते हैं, लेकिन नैतिक जिम्मेदारी उससे कहीं गहरी होती है और लोगों को जवाबदेह ठहराने में उसकी भूमिका अहम है। यह जीवन के हर क्षेत्र में दिखती है, लेकिन खासकर वहां जहां फैसले लिए जाते हैं।”
इस सत्र में भाग लेने वाले अन्य नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं में ट्यूनीशिया के अब्देस्सत्तार बेन मौसा, मोहम्मद फाधेल महफूद, ओउइदेद बुशामाउई और हौसीन अब्बासी, पोलैंड के लेच वलेसा, लाइबेरिया की लेमाह गबोवी, श्रीलंका के मोहन मुनसिंघे, इराक की नादिया मुराद और ईरान की शिरीन एबादी शामिल थे।
पूर्वी तिमोर के जोस मैनुएल रामोस होर्ता और कोस्टा रिका के ऑस्कर एरियस सांचेज ने कार्यक्रम में ‘वर्चुअली’ भाग लिया।
सत्यार्थी ने कहा कि उन्होंने नैतिक जवाबदेही की कमी से निपटने के लिए ‘सत्यार्थी मूवमेंट फॉर ग्लोबल कम्पैशन’ की शुरुआत की है, जिसमें कई नोबेल विजेताओं और विश्व के नेताओं का सहयोग है। उन्होंने कहा कि करुणा की कमी से यह समस्या उत्पन्न हो रही है।
उन्होंने स्पष्ट किया, “जब मैं करुणा की बात करता हूं, तो मैं दया, सहानुभूति, प्रेम या परोपकार की बात नहीं कर रहा हूं। ये अच्छे मानवीय गुण हैं, लेकिन ये उस गहराई से जड़े जमाए बैठी उन समस्याओं का समाधान नहीं कर सकते जो व्यवस्था में असमानता और भेदभाव से उपजी हैं।”
बच्चों के अधिकारों के प्रबल पक्षधर सत्यार्थी ने भारत सरकार से आग्रह किया कि वह सहिष्णुता बढ़ाने की दिशा में संयुक्त अरब अमीरात से सीख ले, जहां स्कूली बच्चों में सहिष्णुता की भावना को विकसित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, “मैं यह भी कहूंगा कि दुनिया की सभी सरकारों को अपने नागरिकों को सह-अस्तित्व, सहिष्णुता और एक-दूसरे को सुनने की कला सिखानी चाहिए।”
सत्यार्थी ने बताया कि भारत में इस दिशा में कई नागरिक संगठनों, धार्मिक संस्थाओं और शैक्षणिक जगत ने उल्लेखनीय कार्य किया है।
उन्होंने कहा, “लेकिन शायद हमारी सरकार भी संयुक्त अरब अमीरात के ‘मिनिस्ट्री ऑफ टॉलरेंस एंड को-एग्जिस्टेंस’ से प्रेरणा ले सकती है। हमें इन प्रयासों को एक बड़े आंदोलन में बदलना होगा।”
इस सत्र से पहले पोलैंड के पूर्व राष्ट्रपति और 1983 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता लेच वलेसा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से बातचीत में कहा कि आज कई समस्याओं का समाधान स्थानीय स्तर पर नहीं हो सकता। पूरी दुनिया में अधिकतर राजनेता अपने क्षेत्र और अल्पकालिक सफलता पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
भाषा
राखी मनीषा नरेश
नरेश