नालंदा विश्वविद्यालय 2024 का इतिहास: दुनिया की पहली विश्वविद्यालय का सम्पूर्ण विवरण

Ankit
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नालंदा विश्वविद्यालय 2024 प्राचीन भारत के उच्च शिक्षा केन्द्रों में से एक था और इसका इतिहास 5वीं शताब्दी से शुरू होता है। यह बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित था और अपने समय का एक प्रमुख बौद्ध शिक्षा केन्द्र था। यहाँ पर विभिन्न विषयों की शिक्षा दी जाती थी और यह अपने विशाल पुस्तकालय के लिए भी प्रसिद्ध था।

नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के राजा कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म के प्रचलन के दौरान, नालंदा बौद्ध शिक्षा और संस्कृति का केन्द्र बन गया। इसके संस्थापक कुमारगुप्त ने विश्वविद्यालय के लिए विशाल भूमि और पर्याप्त धनराशि दान की थी, जिससे इसकी प्रारंभिक संरचना और व्यवस्था स्थापित हुई।

नालंदा विश्वविद्यालय कैसा दिखता था

नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर बहुत बड़ा था और इसमें कई मठ, विहार, और शिक्षा भवन थे। परिसर में एक विशाल पुस्तकालय था, जो तीन भागों में विभाजित था: रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक। यह पुस्तकालय बौद्ध धर्म के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर आधारित पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहित करता था।

नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षण की व्यवस्था बहुत ही संगठित और उन्नत थी। यहाँ पर छात्रों को विभिन्न विषयों की गहन शिक्षा दी जाती थी। शिक्षक और विद्यार्थी दोनों ही उच्च कोटि के होते थे। यहाँ पर भारतीय उपमहाद्वीप के अलावा, चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की और श्रीलंका से भी छात्र अध्ययन करने आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों में बौद्ध धर्म, वेद, दर्शन, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, व्याकरण, तर्कशास्त्र और अनेक अन्य विषय शामिल थे। यहाँ पर शिक्षा के लिए विभिन्न स्तरीय पाठ्यक्रम होते थे और अध्ययन की अवधि कई वर्षों तक हो सकती थी।

नालंदा विश्वविद्यालय 2024

नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध विद्वान और शिक्षक

नालंदा विश्वविद्यालय में अनेक महान विद्वान और शिक्षक हुए हैं, जिन्होंने अपने समय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें से कुछ प्रसिद्ध नाम हैं:

आर्यभट्ट: प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री, जिन्होंने शून्य की खोज की और पृथ्वी के घूर्णन का सिद्धांत प्रस्तुत किया।

नागार्जुन: महान बौद्ध दार्शनिक और रसायनशास्त्री, जिन्होंने मध्यमक दर्शन का विकास किया।

शीलभद्र: बौद्ध धर्म के महान विद्वान और शिक्षक, जो ह्वेनसांग के गुरु थे।

धर्मकीर्ति: तर्कशास्त्र और बौद्ध दर्शन के विशेषज्ञ, जिन्होंने तर्क और प्रमाण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया।

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विदेशी छात्रों और यात्रियों का योगदान

नालंदा विश्वविद्यालय की विख्यात दूर-दूर तक फैली थी, जिसके कारण यहाँ पर विदेशों से भी छात्र और यात्री आते थे। इनमें से कुछ नाम हैं:

ह्वेनसांग: चीनी यात्री और विद्वान, जिन्होंने नालंदा में कई वर्षों तक अध्ययन किया और अपने अनुभवों का वर्णन किया।

इत्सिंग: एक अन्य चीनी यात्री, जिन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय का विस्तार से वर्णन किया है।

ह्वेनसांग और इत्सिंग ने नालंदा की शिक्षण व्यवस्था, पुस्तकालय, और विद्यार्थियों की संख्या का विस्तृत वर्णन किया है, जो आज भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

नालंदा विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था और वित्तीय प्रबंधन

नालंदा विश्वविद्यालय की प्रशासनिक व्यवस्था बहुत ही संगठित थी। यहाँ पर एक कुलपति (चांसलर) और अनेक उपकुलपति (वाइस-चांसलर) होते थे, जो विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों और शिक्षण कार्यों का संचालन करते थे। शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच अनुशासन और शिक्षण की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए सख्त नियम और कानून होते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय के वित्तीय प्रबंधन के लिए विभिन्न स्रोत थे। राजा और धनी व्यापारी विश्वविद्यालय को दान देते थे। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों और देशों के शासक भी नालंदा को आर्थिक सहायता प्रदान करते थे। इन दानों और अनुदानों के माध्यम से विश्वविद्यालय की दैनिक आवश्यकताओं और विस्तार योजनाओं को पूरा किया जाता था।

नालंदा विश्वविद्यालय पतन और विनाश

नालंदा विश्वविद्यालय का पतन 12वीं शताब्दी में हुआ, जब बख्तियार खिलजी ने 1193 ई. में इसे नष्ट कर दिया। खिलजी ने विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी को जला दिया, जिससे इसमें संग्रहित अनमोल पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं। इसके बाद, नालंदा का गौरव धीरे-धीरे समाप्त हो गया और यह शिक्षा केन्द्र पूरी तरह से खंडहर बन गया।

नालंदा विश्वविद्यालय पुनःस्थापना के प्रयास

20वीं शताब्दी में नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने के प्रयास शुरू हुए। भारत सरकार ने 2006 में इसके पुनरुद्धार की योजना बनाई और 2014 में नालंदा विश्वविद्यालय को आधिकारिक रूप से पुनः स्थापित किया गया। नये नालंदा विश्वविद्यालय में विभिन्न विषयों में उच्च शिक्षा प्रदान की जा रही है और इसे फिर से एक वैश्विक शिक्षा केन्द्र के रूप में विकसित करने के प्रयास जारी हैं।

वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय 2024

नालंदा विश्वविद्यालय 2024

वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय के संदर्भ में, 19 जून, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय एक आधुनिक संस्थान के रूप में उभर रहा है, जो प्राचीन ज्ञान और आधुनिक शिक्षा का संगम है। यहाँ पर विभिन्न विषयों में स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय का उद्देश्य प्राचीन नालंदा की गौरवशाली परंपरा को पुनः स्थापित करना और वैश्विक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देना है।

नालंदा विश्वविद्यालय विशेष धरोहर शमिल

नालंदा विश्वविद्यालय की धरोहर को संरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं। इसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, यूनेस्को ने 2016 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। यह कदम नालंदा की सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण रहा है।

नालंदा विश्वविद्यालय 2024

नालंदा विश्वविद्यालय न केवल प्राचीन भारत का एक महान शिक्षा केन्द्र था, बल्कि यह विश्व के लिए भी ज्ञान का एक महत्वपूर्ण स्रोत था। इसके गौरवशाली इतिहास और ज्ञान की परंपरा ने इसे एक अद्वितीय स्थान प्रदान किया है। वर्तमान में इसके पुनरुद्धार के प्रयास से यह उम्मीद की जाती है कि नालंदा फिर से एक बार विश्वभर में शिक्षा और ज्ञान का प्रमुख केन्द्र बनेगा।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व के शैक्षणिक और सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके पुनरुद्धार के प्रयास हमारे प्राचीन ज्ञान को संजोने और उसे आधुनिक सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का एक महत्वपूर्ण कदम हैं। उम्मीद है कि नालंदा विश्वविद्यालय एक बार फिर से विश्वभर में शिक्षा और ज्ञान का प्रमुख केन्द्र बनेगा, और इसकी गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाएगा।


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