नए साल में बढ़िया वृद्धि और ब्याज दरों में कटौती की संभावना

Ankit
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(निशिकांत द्विवेदी)


नयी दिल्ली, एक जनवरी (भाषा) भारत को भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटना होगा, घरेलू मुद्रास्फीति पर काबू पाना होगा और निजी क्षेत्र को अपने खर्चे और बढ़ाने के लिए प्रेरित करना होगा, क्योंकि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था सितंबर तिमाही की सुस्ती को पीछे छोड़ते हुए 2025 में और अधिक सकारात्मक प्रगति की उम्मीद कर रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अर्थशास्त्रियों ने कहा कि 2024-25 की तीसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) के उच्च आवृत्ति संकेतक बताते हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है, जो मजबूत त्यौहारी गतिविधि और ग्रामीण मांग में निरंतर वृद्धि से प्रेरित है।

देश की आर्थिक वृद्धि जुलाई-सितंबर में सात तिमाहियों के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर आ गई थी। हालांकि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इसे ‘‘अस्थायी झटका’’ करार दिया है।

सीतारमण ने संसद में चर्चा के दौरान कहा था कि दूसरी तिमाही में उम्मीद से कम 5.4 प्रतिशत की जीडीपी वृद्धि एक‘‘ अस्थायी झटका’’ है और आने वाली तिमाहियों में अर्थव्यवस्था में स्वस्थ वृद्धि देखी जाएगी।

वृद्धि बनाम मुद्रास्फीति की बहस पर वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच मतभेद के साथ ही सभी की निगाहें फरवरी में ब्याज दरों में संभावित कटौती पर भी टिकी होंगी, जब केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति की समिति नए गवर्नर संजय मल्होत्रा ​​के नेतृत्व में पहली बार बैठक करेगी।

समिति की बैठक वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट के तुरंत बाद होगी, जिसमें मोदी 3.0 सरकार के आर्थिक तथा राजकोषीय खाके को प्रस्तुत किया जाएगा। खासकर वैश्विक तनावों तथा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के जल्द राष्ट्रपति पद संभालने के संदर्भ में..।

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भारत की संभावनाएं उज्ज्वल हैं, क्योंकि व्यापक आर्थिक बुनियादी मजबूत है।

वित्त वर्ष 2024-25 के लिए वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि 6.6 प्रतिशत और वित्ती वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि 7.3 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा भी काफी हद तक ट्रंप की नीतिगत पहलों पर निर्भर करेगी, जो 20 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति का पदभार संभालेंगे। साथ ही भारत के साथ-साथ अन्य देशों में प्रतिभूति तथा मुद्रा बाजारों में वर्तमान अस्थिरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘‘ आने वाले वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावनाएं उज्ज्वल दिख रही हैं। हम उम्मीद कर सकते हैं कि वृद्धि दर वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपेक्षित 6.6-6.8 प्रतिशत के अतिरिक्त सात प्रतिशत के स्तर को पार कर जाएगी।’’

साख निर्धारण करने वाली एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि वैश्विक स्तर पर बढ़ती अनिश्चितता, भू-राजनीति व संघर्ष, केंद्रीय बैंक की नीतिगत दरों में ढील और जिंस की कीमतों, शुल्क के खतरों आदि के बीच घरेलू परिदृश्य से भारतीय अर्थव्यवस्था का आर्थिक परिदृश्य काफी उज्ज्वल प्रतीत होता है।

उन्होंने कहा, ‘‘ आगामी वित्त वर्ष 2025-26 के केंद्रीय बजट में मध्यम अवधि के नए राजकोषीय मार्ग के सामने आने की उम्मीद है। बाद में अगले वित्त आयोग की सिफारिशें राजकोषीय नीति के लिए दिशा तय करेंगी। वैश्विक अनिश्चितताओं और निर्यात पर उनके प्रभाव को देखते हुए निजी क्षेत्र की क्षमता वृद्धि कुछ हद तक सतर्क रह सकती है।’’

वित्त मंत्रालय की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, सरकार राजकोषीय विवेकशीलता के लिए प्रतिबद्ध है।

इसमें कहा गया, केंद्र सरकार वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में घोषित राजकोषीय समेकन के सुचारू मार्ग पर चलने तथा वित्त वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 प्रतिशत से कम रखने के लिए प्रतिबद्ध है।

भाषा निहारिका नरेश

नरेश



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