‘द सब्सटेंस’ ने सौंदर्य के मानकों से जुड़े भय को दर्शाया |

Ankit
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(सारा ऑस्कर और चेरीन फहद, यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, सिडनी)


सिडनी, 27 सितंबर (द कन्वरसेशन) ‘द सब्सटेंस’ फिल्म में एक पूर्व अभिनेत्री एलिजाबेथ स्पार्कल (डेमी मूर) का करियर बढ़ती उम्र के साथ एक टेलीविजन नेटवर्क पर ‘एरोबिक्स’ का प्रशिक्षण देने वाली महिला के तौर पर सिमट कर रह जाता है और उसके 50वें जन्मदिन पर नेटवर्क का कार्यकारी अधिकारी हार्वे क्वैड उसे नौकरी से निकाल देता है।

उम्रदराज महिलाओं का कोई भविष्य नहीं है

नौकरी से निकाल दिए जाने के बाद एलिजाबेथ एक हादसे का शिकार हो जाती है और अस्पताल में एक खूबसूरत युवा डॉक्टर उसे काला बाजार में उपलब्ध एक ऐसी दवा के बारे में बताता है, जिसे ‘द सब्सटेंस’ के नाम से जाना जाता है और उसका एक ही इंजेक्शन व्यक्ति को युवा बना देता है। फिर से जवान दिखने के लिए बेताब एजिलाबेथ इस पदार्थ का सहारा लेती है जिससे उसके युवा संस्करण सु (मार्गेरेट क्याल्ले) का जन्म होता है।

‘सब्सटेंस’ को लेने के कड़े नियम हैं। इसका एक नियम यह है कि एलिजाबेथ और सु को अपना समय बांटना होगा और वे बारी-बारी से सात-सात दिन के लिए दुनिया में रहेंगी। जब एक जीवित होगी तो दूसरी को सोना होगा ताकि उनकी कोशिकाएं फिर से बन सकें।

एक अन्य नियम यह है कि उन्हें यह याद रखना होगा कि दो ऐसे अलग-अलग शरीर होने के बावजूद वे ‘‘एक हैं’’ जो एक साथ नहीं रह सकते।

एलिजाबेथ और सु का डीएनए समान होने के बावजूद और नियमानुसार उनके ‘एक’ होने के बावजूद एलिजाबेथ फिर से जवान नहीं होती जिसके कारण उनके बीच चीजें बिगड़ने लगती हैं।

पुरुषों की दृष्टि पर निशाना साधना

‘द सब्सटेंस’ ऐसी ‘हॉरर एवं साइंस फिक्शन’ फिल्म है जो शारीरिक सौंदर्य के मानकों पर कटाक्ष करती है। यह फिल्म नारी की सुंदरता और यौवन के प्रति उसकी सनक, उम्रदराज महिलाओं को नजरअंदाज किए जाने और हॉलीवुड की ‘स्टार’ प्रणाली में महिलाओं की शारीरिक सुंदरता के अत्यधिक इस्तेमाल की समस्याओं का उठाती है।

फिल्म निर्देशक कोरली फारगेट ने साक्षात्कारों में सौंदर्य से जुड़े इस मिथक पर निशाना साधा है कि एक महिला की अहमियत उसके रूप से जुड़ी होती है। साथ ही उन्होंने फिल्म के जरिए पुरुष की उस दृष्टि पर भी कटाक्ष किया है जो नारी के शरीर को पुरुषों के लिए एक वस्तु के रूप देखती है।

‘द सब्सटेंस’ में दो चरित्रों के मूल भाव को दर्शाया गया है। शुरुआती दृश्य में, एक अंडे की जर्दी में एक सिरिंज लगाई जाती है जिससे वह दो भागों में विभाजित हो जाता है। यह दृश्य एक ही वस्तु के दो चरित्रों को दर्शाता है। एलिजाबेथ जब ‘सब्सटेंस’ का सहारा लेती है तो उसके तथाकथित ‘बेहतर संस्करण’ के ‘जन्म से’ इसे फिर से दर्शाया गया है।

एलिजाबेथ, सु की ‘बिलबोर्ड’ पर तस्वीर देखकर एक जटिल प्रतिक्रिया देती है। उसमें मौजूद जलन की भावना बढ़ जाती। सु, एलिजाबेथ के सबसे गहरे डर को जगाती है।

जैसे-जैसे सु की प्रसिद्धि बढ़ती जाती है, एलिजाबेथ की प्रासंगिकता समाप्त होती जाती है जिससे ‘सब्सटेंस’ लेने का पूरा उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

सु एलिजाबेथ की मुक्ति और विनाश दोनों का कारण बनती है। सु उस यौवन का प्रतिनिधित्व करती है, जो एलिजाबेथ को कभी वापस नहीं मिल सकता। सु सात-दिन के नियम को बार-बार तोड़कर एलिजाबेथ के जीवन को समाप्त करने का खतरा बढ़ाती है। इसका एलिजाबेथ के सोते हुए शरीर पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है और उसका शरीर और तेजी से बूढ़ा होने लगता है।

फिल्म में दर्शाया गया है कि समाज उम्रदराज महिलाओं के शरीर को किस प्रकार देखता है: रजोनिवृत्ति का उपहास उड़ाया जाता है, तथाकथित ‘‘बदलाव’’ को जीवन का स्वाभाविक हिस्सा न मानकर, उसे डरावना और घृणा करने योग्य माना जाता है।

‘सब्सटेंस’ से एलिजाबेथ को कोई मदद नहीं मिलती। उसे अंतत: यह अनुभूति होती है कि वह बूढ़े होते अपने शरीर को अपनाने से जितना बचती रहेगी, जाल में उतना ही अधिक फंसती जाएगी।

(द कन्वरसेशन)

सिम्मी मनीषा

मनीषा



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