थाली में परोसे गए मौलिक अधिकार जैसा कुछ नहीं होता: उच्चतम न्यायालय |

Ankit
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नयी दिल्ली, तीन मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि मौलिक अधिकारों का प्रयोग करने वाले लोगों का भी एक कर्तव्य है और मौलिक अधिकार थाली में परोस कर देने जैसा कुछ नहीं होता।


न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया के मामले की सुनवाई करते हुए यह गंभीर टिप्पणी की। पीठ ने इलाहाबादिया को अपना ‘द रणवीर शो’ फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ लेख लिख रहे हैं। हम जानते हैं कि उन्हें कैसे संभालना है। इस देश में मौलिक अधिकार थाली में परोस कर देने जैसा कुछ नहीं है। मौलिक अधिकार कर्तव्यों से जुड़े हैं और जब तक वे लोग अपने कर्तव्यों को समझना नहीं चाहते, तब तक हम जानते हैं कि ऐसे तत्वों से कैसे निपटना है।’’

अदालत ने कहा कि अगर कोई मौलिक अधिकारों का आनंद लेना चाहता है, तो देश ने इसके आनंद की गारंटी तो दी है, लेकिन कर्तव्य के साथ इसकी गारंटी दी है।

पीठ ने कहा, ‘‘तो उस गारंटी में उस कर्तव्य को निभाने की गारंटी शामिल होगी। वैसे हम काफी आशान्वित हैं और हमें पूरा यकीन है कि उन्होंने जो किया है, उसके लिए कुछ पश्चाताप है।’’

‘बीयरबाइसेप्स’ के नाम से मशहूर इलाहाबादिया पर कॉमेडियन समय रैना के यूट्यूब शो ‘इंडियाज गॉट लेटेंट’ में माता-पिता और यौन संबंधों पर की गई टिप्पणी के लिए कई प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।

शीर्ष अदालत ने इलाहाबादिया को अपना पॉडकास्ट इस बात को ध्यान में रखते हुए फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी कि ‘नैतिकता और शालीनता’ बनाए रखी जाएगी और सामग्री सभी उम्र के दर्शकों के लिए उपयुक्त होगी।

भाषा वैभव माधव

माधव



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