‘तनखैया’ घोषित होने के एक दिन बाद शिअद प्रमुख सुखबीर बादल अकाल तख्त के समक्ष पेश हुए

Ankit
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अमृतसर, 31 अगस्त (भाषा) अकाल तख्त द्वारा ‘तनखैया’ घोषित किये जाने के एक दिन बाद शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल शनिवार को सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ के समक्ष पेश हुए और राज्य में 2007 से 2017 तक उनकी पार्टी की सरकार द्वारा की गई ‘गलतियों’ के लिए माफी मांगी।


सुखबीर के अलावा उनके पूर्व कैबिनेट सहयोगी – दलजीत सिंह चीमा, गुलजार सिंह रणीके और शरणजीत सिंह ढिल्लों और तत्कालीन मुख्यमंत्री के सलाहकार महेश इंदर ग्रेवाल ने भी अकाल तख्त को अपना लिखित स्पष्टीकरण सौंपा।

अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह ने शुक्रवार को बादल को धार्मिक कदाचार का दोषी करार देते हुए उन्हें ‘तनखैया’ घोषित किया था।

‘पंज सिंह साहिबान’ की बैठक के बाद जत्थेदार ने सुखबीर बादल को 15 दिनों के भीतर सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ- अकाल तख्त- के समक्ष उपस्थित होकर उप मुख्यमंत्री और शिअद प्रमुख के तौर पर लिये गये उन निर्णयों के लिए माफी मांगने को कहा था, जिनसे ‘पंथ’ की छवि को गहरा धक्का लगा था और सिख हितों को नुकसान पहुंचा।

सिंह ने यहां अकाल तख्त परिसर से फैसला सुनाते हुए कहा था कि बादल तब तक ‘तनखैया’ बने रहेंगे, जब तक वह अपने ‘पापों’ के लिए माफी नहीं मांग लेते।

उन्होंने कहा कि 2007-17 तक अकाली दल की सरकार में मंत्री रहे सिख समुदाय के सदस्यों को भी 15 दिनों के भीतर लिखित स्पष्टीकरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से अकाल तख्त में उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।

शनिवार को अकाल तख्त सचिवालय को सौंपे गए अपने पत्र में बादल ने लिखा, ‘‘गुरु का एक विनम्र सिख होने के नाते, मैं इस आदेश को स्वीकार करता हूं और विनम्रतापूर्वक अपना सिर झुकाता हूं। अकाल तख्त द्वारा जारी किए गए आदेश के बाद, मैं एक विनम्र सेवक होने के नाते अकाल तख्त पर आया हूं और हाथ जोड़कर माफी मांगता हूं।’’

उनके पूर्व कैबिनेट सहयोगियों ने भी अपने स्पष्टीकरण प्रस्तुत किए और कहा कि वे बादल द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से सहमत हैं, इसलिए वे सभी पूर्ववर्ती शिअद सरकार के दौरान की गई ‘गलतियों’ के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं।

उन्होंने अकाल तख्त से माफी मांगी और कहा कि अकाल तख्त द्वारा जो भी ‘तनखा’ (धार्मिक दंड) दिया जाएगा, वे एक विनम्र सेवक के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हैं।

पूर्व मंत्रियों ने अपने पत्र अलग-अलग प्रस्तुत किए और अकाल तख्त द्वारा दी जाने वाली सजा भुगतने की सहमति दी।

अकाल तख्त के जत्थेदार को यह विशेषाधिकार है कि वह बादल को ‘पंज सिख साहिबान’ के समक्ष पेश होने के लिए बुलाए, जो सिख सिद्धांतों के अनुसार उन्हें धार्मिक दंड दे सकते हैं।

बादल ने इससे पहले पंजाब में अकाली दल के सत्ता में रहने के दौरान की गई ‘सभी गलतियों’ के लिए ‘बिना शर्त माफी’ मांगी थी।

पार्टी के बागी नेताओं द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद जत्थेदार ने उन्हें सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा था, जिसके बाद उन्होंने हाल ही में अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया था।

बादल ने अपना स्पष्टीकरण तब प्रस्तुत किया, जब जत्थेदार ने उन्हें सिखों की सर्वोच्च धार्मिक पीठ के समक्ष व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा था ।

पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जगीर कौर समेत शिरोमणि अकाली दल के बागी नेता एक जुलाई को जत्थेदार के समक्ष पेश हुये थे और पार्टी की सरकार – 2007 से 2017- के दौरान की ‘चार गलतियों’ के लिये माफी मांगी ।

इस महीने की शुरुआत में अमृतसर स्थित अकाल तख्त सचिवालय ने 24 जुलाई को उस तीन पन्नों के पत्र की प्रति जारी की थी, जिसे बादल ने बागी नेताओं के आरोपों पर जत्थेदार को सौंपा था।

पार्टी नेताओं के एक वर्ग ने बादल के खिलाफ विद्रोह कर दिया है और उनसे पद छोड़ने को कहा है।

बादल ने अपने पत्र में कहा था कि वह और उनके साथी ‘गुरमत’ परंपराओं के अनुसार अकाल तख्त द्वारा जारी हर आदेश को विनम्रता से स्वीकार करेंगे।

उन्होंने अक्टूबर 2015 में अपने पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल द्वारा अकाल तख्त को लिखे गए पत्र की एक प्रति भी संलग्न की थी, जिसमें उन्होंने 2007 से 2015 के बीच पंजाब में हुई ‘कुछ दुखद घटनाओं’ के बारे में लिखा था।

फरीदकोट में 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की ‘बीड़’ (प्रति) चोरी होने, बेअदबी वाले पोस्टर लगाने और बरगाड़ी में बेअदबी जैसी घटनाएं तब हुई थीं, जब शिरोमणि अकाली दल की सरकार थी।

फरीदकोट में बेअदबी विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की गोलीबारी में दो लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हो गए थे।

बागी नेताओं ने 2015 की बेअदबी की घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा था कि तत्कालीन सरकार दोषियों को सजा सुनिश्चित नहीं कर सकी।

उन्होंने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह के खिलाफ 2007 में दर्ज ईशनिंदा मामले का भी उल्लेख किया था, जिसमें उन पर सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का भेष धारण करने का आरोप लगाया गया था।

उन्होंने कहा कि बादल ने कथित तौर पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके यह सुनिश्चित किया कि डेरा प्रमुख को ईशनिंदा मामले में माफ़ी मिल जाए।

वर्ष 2015 में अकाल तख्त ने लिखित माफ़ीनामे के आधार पर डेरा प्रमुख को माफ़ कर दिया था।

हालांकि, सिख समुदाय और कट्टरपंथियों के दबाव के आगे झुकते हुए सिख निकाय ने अपना फ़ैसला रद्द कर दिया था।

भाषा रंजन रंजन दिलीप

दिलीप



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