‘डर’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ जैसी फिल्में छोड़ने का अफसोस नहीं: आमिर खान |

Ankit
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(तस्वीर सहित)


मुंबई, नौ मार्च (भाषा) अभिनेता आमिर खान ने रविवार को कहा कि उन्हें ‘डर’, ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ जैसी फिल्में छोड़ने का कोई अफसोस नहीं है, जो बाद में बॉक्स ऑफिस पर भारी कमाई करने वाली फिल्में बनीं।

अभिनेता ने ‘आमिर खान: सिनेमा का जादूगर’ कार्यक्रम से पूर्व आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में यह बात कही। ‘पीवीआर-आइनॉक्स’ ने भारतीय सिनेमा में आमिर के योगदान को याद करने के लिए इस विशेष फिल्म महोत्सव का आयोजन किया है। इस कार्यक्रम में दिग्गज गीतकार-पटकथा लेखक जावेद अख्तर भी शामिल हुए।

यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित ‘डर’ (1993) में अंतत: शाहरुख खान ने मुख्य भूमिका निभाई जबकि कबीर खान की ‘बजरंगी भाईजान’ में सलमान खान मुख्य भूमिका में थे। राजकुमार हिरानी की ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ और ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ में संजय दत्त ने मुख्य भूमिका निभाई।

आमिर ने कहा, ‘‘मैं ‘डर’ नामक एक फिल्म कर रहा था, लेकिन अंतत: मैंने इसमें काम नहीं किया। उसकी कुछ दूसरी वजहें थीं, रचनात्मक कारणों से फिल्म नहीं छोड़ी थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि जो कुछ भी हुआ, वह बेहतर हुआ। मुझे आज भी लगता है कि यश जी ने जैसे किरदार की कल्पना की थी, उसके लिए शाहरुख थोड़े बेहतर थे। अगर मैंने वह फिल्म की होती तो यह कुछ और होती क्योंकि मैं इसे अलग तरह से देख रहा था। मुझे इसका वाकई पछतावा नहीं है। वह एक अच्छी फिल्म थी और सफल रही।’’

आमिर ने यहां संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने ‘बजरंगी भाईजान’ के पटकथा लेखक वी विजयेंद्र प्रसाद से कहा था कि सलमान इस भूमिका के लिए बेहतर रहेंगे।

उन्होंने 2015 की इस सफल फिल्म के बारे में कहा, ‘‘मुझे ‘बजरंगी भाईजान’ की पटकथा बहुत पसंद आई थी। मैंने कहा था कि ‘मुझे फिल्म पसंद है, लेकिन मुझे लगता है कि आपको इसे सलमान खान के पास ले जाना चाहिए।’ लेकिन वह पटकथा लेकर सलमान के पास नहीं गए, बल्कि कबीर के पास गए। आखिरकार कबीर खान फिर सलमान के पास गए।’’

आमिर ने कहा कि हिरानी ने एक पटकथा लिखी थी जिसमें वह चाहते थे कि वह मुख्य भूमिका निभाएं लेकिन चीजें बदल गईं और ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ (2006) फिल्म बनी। बाद में दोनों ने ‘3 इडियट्स’ (2009) और ‘पीके’ (2014) में साथ काम किया।

बतौर मुख्य अभिनेता 1988 में अपनी पहली फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ की सफलता के बाद आमिर को रोजाना 15 से 20 फिल्मों के प्रस्ताव मिलने लगे।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे शुरूआत में जिन फिल्मों की पेशकश की गई, उनमें से मैंने नौ या 10 फिल्मों के लिए हामी भर दी। मुझे जो निर्देशक पसंद थे, उन्होंने मुझे किसी फिल्म की पेशकश नहीं की, इसलिए मैंने बाकी फिल्मों में से ही फिल्में चुनीं। जब इन फिल्मों की शूटिंग शुरू हुई तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती की है। मैं काम से लौटने के बाद रोजाना रोता था। वह मेरे लिए बहुत बड़ा सबक था।’’

आमिर ने कहा कि एक समय ऐसा आया जब उनकी फिल्में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही थीं, लेकिन तभी महेश भट्ट ने उन्हें एक फिल्म की पेशकश की जिनकी फिल्में उस समय अच्छा प्रदर्शन कर रही थीं। उन्होंने कहा कि लेकिन जब उन्होंने कहानी सुनी, तो उन्हें यह फिल्म पसंद नहीं आई।

अभिनेता ने कहा, ‘‘मैं भट्ट साहब के साथ एक फिल्म की घोषणा करना चाहता था ताकि मेरे करियर को एक नया जीवन मिल सके। मैं उन्हें हां कहने के लिए बेताब था। मैंने उनसे संपर्क किया और कहा ‘भट्ट साहब, क्या मैं इस बारे में सोचने के लिए एक दिन ले सकता हूं?’ मैं उस रात सो नहीं सका। मुझे पता था कि अगर मैंने मना कर दिया तो फिल्म और मेरा करियर दोनों खत्म हो जाएंगे।’’

आमिर ने कहा, ‘‘मैंने खुद से वादा किया कि जब तक मुझे पटकथा, निर्देशक और निर्माता तीनों पसंद नहीं आते (मैं किसी फिल्म के लिए हां नहीं कहूंगा)। अगली शाम मैंने भट्ट साहब को सच बता दिया। मुझे एहसास हुआ कि अपने सबसे बुरे समय में भी मेरे पास न कहने या अपने सपने को बचाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाने का साहस था। मैंने अपने पूरे करियर में यही किया है।’’

‘आमिर खान: सिनेमा का जादूगर’ फिल्मोत्सव 14 मार्च को अभिनेता के 60वें जन्मदिन पर शुरू होगा और 27 मार्च को समाप्त होगा।

भाषा

सिम्मी वैभव

वैभव



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