नयी दिल्ली, छह अप्रैल (भाषा) स्वदेशी जागरण मंच (एसजेएम) ने रविवार को कहा कि अमेरिका की तरफ से जवाबी सीमा शुल्क लगाए जाने के साथ भारत को अपनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार रणनीति नए सिरे से तय करनी चाहिए और डब्ल्यूटीओ में ट्रिप्स और ट्रिम्स जैसे ‘शोषणकारी समझौतों’ से बाहर निकलने पर विचार करना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े संगठन एसजेएम ने कहा कि बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधित पहलुओं (ट्रिप्स) पर समझौते से भारत को रॉयल्टी व्यय में ‘भारी नुकसान’ होने के साथ इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
एसजेएम ने एक बयान में कहा कि भारत का रॉयल्टी व्यय 1990 के दशक में एक अरब डॉलर से कम था लेकिन अब यह 17 अरब डॉलर प्रति वर्ष से अधिक हो गया है।
ट्रिप्स समझौता बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करता है, जबकि डब्ल्यूटीओ व्यापार-संबंधित निवेश उपायों या ट्रिम्स में समझौता कुछ निवेश उपायों को सीमित करता है जो व्यापार को नुकसान पहुंचाते हैं।
एसजेएम के राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने बयान में कहा कि ट्रंप प्रशासन द्वारा ‘एकतरफा’ शुल्क लगाना विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का पूर्ण उल्लंघन है।
उन्होंने कहा, ‘जब हम डब्ल्यूटीओ के लिए पूरी तरह से अवहेलना देख रहे हैं, तो व्यापार एवं तटकर पर सामान्य समझौते (गैट) में ट्रिप्स, ट्रिम्स, सेवाओं और कृषि पर समझौतों के बारे में नए सिरे से सोचने का समय आ गया है।’
महाजन ने कहा कि यह साबित हो चुका है कि डब्ल्यूटीओ जैसे बहुपक्षीय समझौते भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अच्छे नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘द्विपक्षीय समझौते भारत के लिए सबसे उपयुक्त हैं। अब समय आ गया है कि जब अमेरिका जैसे विकसित देश डब्ल्यूटीओ की पूरी तरह से अवहेलना कर रहे हैं, तो हमें ट्रिप्स सहित अन्य शोषणकारी समझौतों से बाहर आने की रणनीति के बारे में सोचना चाहिए।’
महाजन के अनुसार, भारत की अंतरराष्ट्रीय व्यापार रणनीति में बदलाव से कई क्षेत्रों को लाभ हो सकता है।
उन्होंने कहा कि भारत के निर्यात को अमेरिका में नए बाजार मिल सकते हैं, जबकि चीन के निर्यात को ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए उच्च सीमा शुल्कों के कारण नुकसान उठाना पड़ सकता है।
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