जेपीसी जरूरी, शीर्ष अदालत से ‘घोटाले’ का संज्ञान लेने की अपील |

Ankit
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नयी दिल्ली, 11 अगस्त (भाषा) अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) की प्रमुख माधवी बुच पर लगाए गए आरोपों की पृष्ठभूमि में कांग्रेस ने रविवार को कहा कि सरकार को अदाणी समूह की विनियामक द्वारा की गई जांच में हितों के सभी टकराव को तत्काल दूर करना चाहिए।


इसने मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जांच कराने की अपनी मांग भी दोहराई। पार्टी ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायालय को ‘‘पूरे घोटाले’’ का स्वत: संज्ञान लेना चाहिए तथा अपने अधीन जांच करनी चाहिए क्योंकि यहां जांच एजेंसी सेबी पर ही इसमें शामिल होने का आरोप है।

कांग्रेस ने यह भी कहा कि ऐसे ‘‘गंभीर आरोपों’’ की पृष्ठभूमि में बुच अपने पद पर नहीं रह सकती हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि सेबी ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष मोदी जी के करीबी मित्र अदाणी को हिंडनबर्ग के जनवरी 2023 के खुलासों में ‘क्लीन चिट’ दी थी।

खरगे ने कहा कि हालांकि, सेबी प्रमुख के संबंध में ‘‘परस्पर फायदा पहुंचाने’’ के नए आरोप सामने आए हैं।

उन्होंने कहा कि मध्यम वर्ग के छोटे और मध्यम निवेशकों को संरक्षण दिए जाने की जरूरत है क्योंकि वे अपनी मेहनत की कमाई शेयर बाजार में लगाते हैं और उनका सेबी पर भरोसा है।

खरगे ने कहा, ‘‘जब तक इस महा-घोटाले में जेपीसी जांच नहीं होगी, तब तक मोदी जी अपने मित्र की मदद करते रहेंगे और देश की संवैधानिक संस्थाएं तार-तार होती रहेंगी।’’

हिंडनबर्ग रिसर्च ने शनिवार को आरोप लगाया कि सेबी की अध्यक्ष बुच और उनके पति के पास कथित अदाणी धन हेराफेरी घोटाले में इस्तेमाल किए गए अस्पष्ट ‘विदेशी फंड’ में हिस्सेदारी थी।

सेबी प्रमुख बुच और उनके पति ने एक संयुक्त बयान जारी कर हिंडनबर्ग के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे पूरी तरह से बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा कि उनकी वित्तीय स्थिति (विनिमय) एक खुली किताब की तरह है।

अदाणी समूह ने अमेरिकी शोध एवं निवेश फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च के नवीनतम आरोपों को दुर्भावनापूर्ण और चुनिंदा सार्वजनिक सूचनाओं से छेड़छाड़ करने वाला बताते हुए रविवार को कहा कि उसका बाजार नियामक सेबी की अध्यक्ष या उनके पति के साथ कोई वाणिज्यिक संबंध नहीं है।

इस घटनाक्रम पर एक बयान में कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने शनिवार को कहा था कि सेबी की ‘‘अदाणी महाघोटाले की जांच करने में अनिच्छा’’ लंबे समय से सबके सामने है तथा उच्चतम न्यायालय की विशेषज्ञ समिति ने विशेष रूप से इसका संज्ञान लिया था।

उनका यह बयान रविवार को ‘एक्स’ पर पोस्ट किया गया।

रमेश ने कहा कि समिति ने इस बात पर गौर किया है कि सेबी ने 2018 में विदेशी निधियों के अंतिम लाभकारी (अर्थात वास्तविक स्वामित्व) से संबंधित रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को कमजोर किया था तथा 2019 में इसे पूरी तरह से हटा दिया था।

उन्होंने विशेषज्ञ समिति का हवाला देते हुए कहा, ‘‘ऐसा होने से प्रतिभूति बाजार नियामक के हाथ इस हद तक बंध गए कि उसे गलत कार्यों का संदेह तो है लेकिन उसे विभिन्न विनियमों में विभिन्न शर्तों का अनुपालन भी दिखाई देता है। यही वह विरोधाभास है जिसके कारण सेबी इस मामले पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है।’’

रमेश ने कहा, ‘‘हिंडनबर्ग रिसर्च के कल के खुलासे से पता चलता है कि सेबी की अध्यक्ष माधव पुरी बुच और उनके पति ने उन्हीं बरमूडा और मॉरीशस स्थित विदेशी फंड में निवेश किया, जिसमें विनोद अदाणी और उनके करीबी सहयोगियों-चांग चुंग लिंग एवं नास्सेर अली शाहबान ने बिजली उपकरणों के ‘ओवर इनवाइसिंग’ से अर्जित धन का निवेश किया था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा माना जाता है कि इन फंड का इस्तेमाल सेबी के नियमों का उल्लंघन करते हुए अदाणी समूह की कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए भी किया गया था। यह बेहद चौंकाने वाली बात है कि बुच की इन्हीं फंड में वित्तीय हिस्सेदारी थी।’’

रमेश ने कहा कि यह माधवी पुरी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद गौतम अदाणी की उनके साथ लगातार दो बैठकों को लेकर नए सवाल खड़े करता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने बयान में कहा, ‘‘सरकार को अदाणी सेबी जांच में सभी हितों के टकराव को खत्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। तथ्य यह है कि देश के शीर्षतम अधिकारियों की जो कथित मिलीभगत नजर आ रही है, उसे अदाणी महा-घोटाले की व्यापक जांच के लिए एक जेपीसी का गठन कर ही सुलझाया जा सकता है।’’

रमेश ने कहा कि ट्विटर पर सेबी का एकाउंट ऐसे समय ‘बंद’ कर दिया गया है जब उसके शीर्ष नेतृत्व के हितों के टकराव का ‘सबूत’ सामने आया है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस अस्पष्टता से यह सवाल उठता है कि क्या यह मंच चुपचाप उन पुराने परामर्शों/प्रेस विज्ञप्तियों को हटा रहा है, जो मोदानी घोटाले में संगठन/इसके नेतृत्व पर दोषारोपण कर रहे हों।’’

कांग्रेस की प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने संवाददाता सम्मेलन में बुच पर कई सवाल दागे। उन्होंने पूछा कि जब वह सेबी की पूर्णकालिक निदेशक थीं, तो क्या उन्होंने कभी सिंगापुर में अगोरा पार्टनर्स या भारत में अगोरा पार्टनर्स में शेयर/हिस्सेदारी रखी थी?

श्रीनेत ने पूछा कि क्या उन्होंने इस शेयरधारिता और प्राप्त आय एवं राजस्व का खुलासा किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय को यह बताने से पहले कि सेबी को कुछ नहीं मिला, क्या आपने अदालत द्वारा नियुक्त समिति या उच्चतम न्यायालय को यह बताया था कि आप या आपके पति कुछ ऐसे फंड में निवेशक थे जिनकी जांच का जिम्मा आपको दिया गया था?’’

श्रीनेत ने पूछा, ‘‘क्या आपने खुद को जांच से अलग कर लिया और अगर आपने ऐसा नहीं किया, तो आपने ऐसा क्यों नहीं किया?’’

उन्होंने सवाल किया कि इन आरोपों के मद्देनजर क्या सेबी प्रमुख को अपने पद पर बने रहना चाहिए या उन्हें तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाना चाहिए।

श्रीनेत ने यह भी सवाल किया कि क्या अदाणी एवं सेबी प्रमुख के बीच सांठगांठ प्रधानमंत्री मोदी के सरंक्षण के बगैर संभव है।

कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार विभाग के प्रमुख पवन खेड़ा ने रविवार को कहा कि स्तब्धकारी खुलासे से न केवल सेबी प्रमख और अदाणी समूह के बीच के ‘‘गहरे संबंध’’ उजागर होते हैं, बल्कि यह भी पता चलता है कि इस सरकार में निगरानी संस्थाओं में नियुक्तियां कैसे की जाती हैं।

भाषा

राजकुमार नेत्रपाल

नेत्रपाल



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