(गौरव सैनी)
नयी दिल्ली, 13 अप्रैल (भाषा) सरकार ने जब जनवरी 2024 में 199 जिला कृषि मौसम विज्ञान इकाइयों (डीएएमयू) को बंद करने का आदेश दिया तो लगभग 130 कर्मचारियों ने बिना वेतन काम करने का फैसला किया क्योंकि किसान उन पर ही निर्भर थे।
कर्मचारी अदालत गए, फैसले पर रोक लगी और वे काम करते रहे और बिगड़ते मौसम और बढ़ते जलवायु जोखिमों से निपटने में किसानों की मदद करते रहे।
इस वर्ष 31 मार्च को आखिरकार जब अदालत के हस्तक्षेप के बाद उनका वेतन जारी किया गया तो मानों उन्हें अपने धैर्य, जीवटता और लगन का ईनाम मिल गया।
डीएएमयू में काम करने वाले राजस्थान के एक व्यक्ति ने नाम सार्वजनिक न करने का अनुरोध करते हुए कहा, “मैं अपनी बेटी की स्कूल फीस नहीं दे पा रहा था। मैंने प्रिंसिपल के सामने हाथ जोड़े और जल्द ही भुगतान करने का वादा किया। मैं खामोश रहा, लेकिन अंदर ही अंदर मैं टूट रहा था।”
जब उन्होंने यह बताया कि कैसे उनके परिवार को खाने तक में कटौती करनी पड़ी तो उनका गला रुंध गया।
उन्होंने कहा, “कीमतें बढ़ीं तो हमने टमाटर या प्याज खरीदना बंद कर दिया। कभी-कभी तो हमने सब्जियां खाना भी छोड़ दिया। हम दाल-चावल खाकर गुजारा करते थे।’’
उन्होंने कहा,‘‘ मेरे बच्चे पूछते थे कि हम पहले की तरह क्यों नहीं खाते तो मैं सोचता था कि उन्हें कैसे समझाऊं कि हमारे पास पैसे ही नहीं हैं।”
उन्होंने कहा कि कई बार तो उन्हें इतनी निराशा महसूस हुई कि वह कम वेतन वाली नौकरी करने के बारे में सोचने लगे।
राजस्थान के एक अन्य डीएएमयू कर्मचारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनका परिवार दूसरों की दया पर जी रहा है।
उन्होंने कहा, “हर महीने मैं अपने मकान मालिक से एक ही बात कहता हूं कि अभी वेतन नहीं मिला है।”
उन्होंने कहा, “मैं अपने परिवार को बाहर खाने पर ले जाना चाहता हूं या अपने बच्चे के लिए कुछ अच्छा खरीदना चाहता हूं। लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं असहाय महसूस करता हूं।”
उन्होंने कहा, “जब परिवार में कोई बीमार होता है तो मैं बस यही प्रार्थना करता हूं कि कोई गंभीर बात न हो क्योंकि हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं।”
उत्तर प्रदेश में, डीएएमयू के एक पर्यवेक्षक की मां की कथित तौर पर बीमारी के कारण मौत हो गई।
उनके सहकर्मियों का कहना है कि वह ‘समय पर देखभाल की व्यवस्था नहीं कर सके क्योंकि उन्हें महीनों से वेतन नहीं मिला था।”
महाराष्ट्र में, एक अन्य कर्मचारी को अपने आवास ऋण का भुगतान करने में असमर्थ होने पर बैंक से बार-बार नोटिस मिले हैं।
उन्होंने कहा, “मेरी बेटी मुझे अपने स्कूल के व्हाट्सऐप ग्रुप पर आए संदेश दिखाती है, जिसपर अन्य छात्रों के अभिभावक फीस जमा करने की रसीदें साझा करते हैं। मेरे पास दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है। मुझे लगा कि मेरी वजह से वह परेशान हुई।”
मध्य प्रदेश के एक डीएएमयू कर्मचारी ने कहा कि उन्होंने एक पुरानी बीमारी के इलाज के लिए जरूरी दवा खरीदने में देरी की।
उन्होंने कहा, “मैंने 31 मार्च को दवा खरीदी, जिस दिन मेरा वेतन आया। यही पहला काम था जो मैंने किया।”
देश में 1976 में ‘एग्रोमेट एडवाइजरी सर्विसेज’ की शुरुआत की गई थी और इसका उद्देश्य था सही निर्णय लेने में किसानों की मदद करना।
साल 1993 से, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के साथ साझेदारी के तहत 130 ‘एग्रोमेट फील्ड यूनिट्स’ की स्थापना की गई ताकि समय पर फसलों के बारे में विशिष्ट सलाह दी जा सके। प्रत्येक इकाई 5-6 जिलों के किसानों की सहायता करती है।
साल 2012 में, सरकार ने परामर्श का दायरा बढ़ाने के लिए ग्रामीण कृषि मौसम सेवा शुरू की। वर्ष 2018 तक, प्रायोगिक परियोजना के तहत 530 डीएएमयू स्थापित करने की योजना बनाई गई थी। लेकिन कोविड महामारी के कारण, केवल 199 स्थापित किए जा सके।
प्रत्येक डीएएमयू ने दो अनुबंध कर्मचारियों को नियुक्त किया। इनमें एक कर्मचारी विषय विशेषज्ञ (कृषि मौसम विज्ञान) होता था जिसका भत्ते समेत वेतन प्रति माह 93,000 रुपये से 1.04 लाख रुपये था जबकि दूसरा कर्मचारी ‘एग्रोमेट ऑब्जर्वर’ था, जिसका वेतन 25,000 रुपये से 30,000 रुपये था।
फरवरी 2023 में नीति आयोग ने मॉडल की स्थिरता को लेकर चिंता जताई और इसके बजाय एक ‘केंद्रीकृत डेटा सिस्टम’ का सुझाव दिया।
जनवरी 2024 में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने मार्च 2024 के अंत तक सभी डीएएमयू को बंद करने का आदेश दिया।
इस कदम से कर्मचारी असमंजस में और किसान चिंता में पड़ गए।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और कांग्रेस नेता जयराम रमेश जैसे वरिष्ठ नेताओं ने डीएएमयू को बंद करने को लेकर सवाल उठाए।
महाराष्ट्र स्थित ‘एग्रोमेटोरोलॉजिकल यूनिट्स एसोसिएशन’ ने प्रधानमंत्री कार्यालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और कृषि मंत्रालय से इस फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि सरकार डीएएमयू के महत्वपूर्ण काम को जारी रखने के लिए एक अधिक व्यवस्थित प्रणाली बनाने की योजना बना रही है। हालांकि, अभी तक कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया गया है।
भाषा जोहेब शोभना
शोभना