जम्मू-कश्मीर में आरक्षण प्रणाली की समीक्षा कर रही समिति छह माह में रिपोर्ट देगी: उमर |

Ankit
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जम्मू/श्रीनगर, 15 मार्च (भाषा) जम्मू-कश्मीर की मौजूदा आरक्षण नीति के खिलाफ शिकायतों पर गौर करने के लिए पिछले साल गठित मंत्रिमंडल उप-समिति छह महीने में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शनिवार को यह जानकारी दी।


यह निर्णय ‘‘नौकरी के इच्छुक लोगों के एक चिंतित समूह’’ द्वारा अब्दुल्ला से की गई मुलाकात के बाद लिया गया।

अब्दुल्ला ने ‘एक्स’ पर जारी पोस्ट में कहा, ‘‘भर्ती में आरक्षण के जटिल मुद्दे का अध्ययन करने के लिए गठित मंत्रिमंडल की उप-समिति को अपनी रिपोर्ट पूरी करने के लिए छह महीने का समय दिया गया है। यह समय-सीमा मैंने नौकरी के इच्छुक चिंतित समूह से मुलाकात के बाद तय की।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, यह समयसीमा उप-समिति के गठन के प्रारंभिक आदेश में नहीं थी। इस चूक को सुधार लिया जाएगा, लेकिन निश्चिंत रहें, समिति निर्धारित समय-सीमा में अपना कार्य पूरा करने के लिए काम कर रही है।’’

इससे पहले दिन में जम्मू कश्मीर सरकार ने विधानसभा को सूचित किया कि केंद्र शासित प्रदेश में मौजूदा आरक्षण नीति के खिलाफ शिकायतों पर गौर करने के लिए पिछले साल गठित तीन सदस्यीय कैबिनेट उप-समिति के लिए अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

समाज कल्याण मंत्री सकीना इटू ने पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के विधायक सज्जाद गनी लोन के तारांकित प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी साझा की, जिसमें पूछा गया था कि क्या मौजूदा नीति की समीक्षा के लिए समिति को छह महीने की समय सीमा दी गई है।

इटू की अध्यक्षता में दिसबंर में गठित कैबिनेट की उप-समिति में मंत्री सतीश शर्मा और जावेद राणा शामिल हैं।

मंत्री के जवाब पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लोन ने जम्मू कश्मीर में आरक्षण प्रमाण पत्र जारी करने में ‘स्पष्ट क्षेत्रीय असंतुलन’ पर प्रकाश डाला और आरोप लगाया कि केंद्र शासित प्रदेश में आरक्षण की पूरी अवधारणा कश्मीर के खिलाफ ‘धांधली’ है।

उन्होंने विधानसभा में अपने प्रश्न के उत्तर में प्राप्त आंकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया कि एक अप्रैल, 2023 से लगभग सभी श्रेणियों में प्रमाण पत्र जारी करने में जम्मू क्षेत्र का दबदबा रहेगा।

पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र द्वारा अधिक समुदायों को आरक्षित श्रेणी में जोड़ने तथा केंद्र शासित प्रदेश में कोटा बढ़ाने के निर्णय के बाद जम्मू कश्मीर में आरक्षण एक बड़ा मुद्दा बन गया है।

जम्मू कश्मीर में आरक्षण को 70 प्रतिशत तक बढ़ाने के केंद्र के कदम पर आपत्तियां बढ़ रही हैं।

इटू ने सदन में कहा, ‘विभिन्न पदों के लिए उम्मीदवारों के एक वर्ग द्वारा आरक्षण नियमों के संबंध में व्यक्त की गई शिकायतों की जांच के लिए कैबिनेट उप-समिति गठित की गई है। हालांकि, रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोई विशेष समय-सीमा तय नहीं की गई है।’

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 5,39,306 (5.39 लाख) लोगों (जम्मू संभाग में 4,59,493 (4.59 लाख) और कश्मीर संभाग में 79,813) ने एक अप्रैल, 2023 से प्रमाण पत्र प्राप्त किए हैं।

इसी अवधि के दौरान जम्मू क्षेत्र में 67,112 अनुसूचित जाति (एससी) प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।

मंत्री ने कहा कि जम्मू में 1,379 गांव और कश्मीर में 1,229 गांव आरक्षित पिछड़ा क्षेत्र के अंतर्गत लाभान्वित हुए हैं, जबकि जम्मू क्षेत्र के 551 गांव अंतर्राष्ट्रीय सीमा श्रेणी के अंतर्गत लाभान्वित हुए हैं।

इसी प्रकार, वास्तविक नियंत्रण रेखा श्रेणी के अंतर्गत जम्मू में 268 गांव और कश्मीर में 16 गांव लाभान्वित हुए हैं।

मंत्री ने कहा कि सरकार ने एक अप्रैल, 2023 से जम्मू संभाग में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लोगों को 27,420 प्रमाण पत्र और कश्मीर घाटी में 2,273 प्रमाण पत्र जारी किए हैं।

इस बीच, हंदवाड़ा के विधायक लोन ने कहा कि आंकड़ों से भारी क्षेत्रीय असमानता का पता चलता है।

उन्होंने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘इससे जम्मू कश्मीर में आरक्षण प्रमाण पत्र जारी करने में क्षेत्रीय असंतुलन उजागर होता है। ‘

उन्होंने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में जारी किए गए 67,112 अनुसूचित जाति प्रमाण पत्रों में से 100 प्रतिशत प्रमाण पत्र केवल जम्मू में ही जारी किए गए हैं।

पीपुल्स कांफ्रेंस प्रमुख ने कहा, ‘एसटी श्रेणी में जम्मू में 4,59,493 प्रमाण पत्र (85.3 प्रतिशत) जारी किए गए, जबकि कश्मीर में केवल 79,813 (14.7 प्रतिशत) जारी किए गए। इसी तरह का असंतुलन ईडब्ल्यूएस के लिए भी है – जम्मू में 92.3 प्रतिशत और कश्मीर में 7.7 प्रतिशत (प्रमाणपत्र) जारी किए गए हैं।’

उन्होंने कहा, ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा के लिए जम्मू में 94.3 प्रतिशत प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं, कश्मीर में केवल 5.7 प्रतिशत तथा अंतरराष्ट्रीय सीमा श्रेणियों के लिए जम्मू में 100 प्रतिशत प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।’

लोन ने आरोप लगाया कि आरक्षित पिछड़ा क्षेत्र श्रेणी में भी जम्मू 52.8 प्रतिशत प्रमाण पत्रों के साथ सबसे आगे है, जबकि कश्मीर में यह आंकड़ा 48.2 प्रतिशत है।

पीपुल्स कांफ्रेंस के प्रमुख ने कहा कि इन असमानताओं से पता चलता है कि कश्मीरी भाषी आबादी को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक आरक्षण का नुकसान हुआ है।

उन्होंने कहा, ‘आरक्षण की पूरी अवधारणा कश्मीरी भाषी आबादी और कश्मीर में रहने वाले एसटी या ईडब्ल्यूएस के खिलाफ है।’

लोन ने दावा किया कि कश्मीर में रहने वाले एसटी आबादी भी वंचित है, जो कुल आवेदकों में से केवल 15 प्रतिशत है।

भाषा

योगेश पवनेश

पवनेश



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