नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले चंदे की अदालत की निगरानी में जांच कराने के अनुरोध वाली याचिका में लगाए गए इन आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सामग्री नहीं है कि चंदे के बदले कॉर्पोरेट समूहों को लाभ मिलता है।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने चुनावी बॉन्ड पर मीडिया में आई खबरों पर भरोसा करने के लिए याचिकाकर्ता से सवाल किया और पूछा, ‘‘वे किस हद तक विश्वसनीय हो सकती हैं?’’
अदालत ने कहा, ‘‘इस याचिका में क्या सामग्री है?… किस आधार पर? अखबारों में छपी खबरें, बस इतना ही।’’
अदालत ने याचिका में लगाए गए आरोपों के समर्थन में ‘कोई ठोस सामग्री’ न होने पर कहा कि याचिकाकर्ता बिना सामग्री के जांच की मांग नहीं कर सकता।
पीठ ने आदेश में कहा, ‘‘हम उन्हें जांच, प्रारंभिक जांच, आपराधिक शिकायत दर्ज करने आदि के लिए तभी निर्देश देते हैं, मुकदमा तभी चलाते हैं, जब हम प्रथम दृष्टया संतुष्ट हो जाते हैं। हमारे पास कोई सामग्री नहीं है, सिवाय इसके कि दानदाताओं की एक सूची है, बस इतना ही है।’’
केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के वकील ने कहा कि याचिका में लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं और याचिकाकर्ता को पहले यह साबित करना होगा कि उसकी याचिका पोषणीय है।
याचिकाकर्ता सुदीप नारायण तमणकर ने पिछले साल दो अगस्त को उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश के अनुसरण में 18 अप्रैल 2024 को की गई उनकी शिकायत पर सीबीआई द्वारा अदालत की निगरानी में जांच का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
भाषा धीरज पारुल
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