देहरादून, 15 फरवरी (भाषा) उत्तराखंड के पौड़ी जिले में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित किये जाने वाले दो दिवसीय पुस्तक मेले को रद्द कर दिया गया, क्योंकि कुछ छात्र नेताओं ने वहां महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और भीम राव आंबेडकर पर पुस्तकों की बिक्री को लेकर कथित तौर पर आपत्ति जताई थी। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
हालांकि, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र संघ अध्यक्ष जसवंत सिंह राणा ने कहा कि उन्होंने ‘किताब कौतिक’ पर इसलिए आपत्ति जताई है कि इस मेले के कारण परीक्षा के दौरान छात्रों का ध्यान भटकेगा।
उत्तराखंड के एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पौड़ी जिले में स्थित बिड़ला परिसर में शनिवार से पुस्तक मेला आयोजित होना था।
मेले के आयोजक हेम पंत ने बताया, ‘‘विश्वविद्यालय के छात्र संघ की नाराजगी वाली प्रतिक्रिया के बारे में पता चलने के बाद हमने मेले को रद्द कर दिया। मेले का यह 13वां संस्करण है। इस पहल का उद्देश्य युवा छात्रों को किताबों की दुनिया से अवगत कराना है और ‘‘इस साल हमारी थीम ‘स्क्रीन टाइम कम करें, अधिक किताबें पढ़ें’ थी।’’
उन्होंने कहा कि छात्र संघ की आपत्ति के बाद आयोजकों ने उसी तिथि पर रामलीला मैदान में कार्यक्रम को स्थानांतरित करने का फैसला किया, लेकिन आरएसएस ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया और कहा कि उसने उन्हीं तिथियों पर अपने ‘‘छात्र एकत्रीकरण’’ कार्यक्रम के लिए उक्त स्थल को बुक कर लिया है।
पंत ने कहा, ‘‘हमने आखिरकार मेले को रद्द करने का फैसला किया क्योंकि हमें कुछ साबित नहीं करना था। हमारा उद्देश्य सिर्फ युवा छात्रों में किताबों के प्रति रुचि जगाना है।’’
पंत एक इंजीनियर से सांस्कृतिक कार्यकर्ता बने हैं और वह ‘क्रिएटिव उत्तराखंड’ नामक संगठन के प्रमुख हैं, जो मेले का आयोजन करता है।
इस बीच, सूत्रों ने बताया कि छात्र नेताओं को मेले में कथित तौर पर महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. बीआर अंबेडकर से संबंधित किताबें बेचने पर आपत्ति थी।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पंत ने कहा कि मेले में किताबें प्रदर्शित करने या बेचने का अधिकार प्रकाशकों का है, जिन्हें मेले में आमंत्रित किया जाता है।
उन्होंने कहा, ‘इसमें हमारी कोई भूमिका नहीं है। यह पाठकों पर निर्भर करता है कि वे कौन सी किताब पढ़ना चाहते हैं और कौन सी नहीं।’
हालांकि, संपर्क करने पर छात्र संघ के अध्यक्ष जसवंत सिंह राणा ने कहा, ‘‘यह मेला, विश्वविद्यालय में जारी परीक्षाओं के समय आयोजित किया गया था। इससे छात्रों का ध्यान भटक सकता था, जिसके कारण छात्र संघ ने ‘किताब कौतिक’ की आड़ में आयोजित किए जा रहे सांस्कृतिक और अन्य कार्यक्रमों पर अपनी आपत्ति जताई थी।’’
भाषा सुभाष रंजन
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