कोलकाता, 10 अप्रैल (भाषा) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार को यह बताने का निर्देश दिया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना को चार जिलों को छोड़कर पश्चिम बंगाल में आगे क्यों नहीं क्रियान्वित किया जाना चाहिए।
योजना के तहत लाभार्थियों को पहले से पूर्ण किए गए कार्य के लिए भुगतान किए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (एनआरईजी) अधिनियम शिकायतों के कारण योजना के कार्यान्वयन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की अनुमति नहीं देता है।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि उचित उपचारात्मक उपाय उचित समयसीमा के भीतर किए जाने चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम के नेतृत्व वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार को यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि धन के दुरुपयोग के आरोप वाले पूर्व बर्धमान, हुगली, मालदा और दार्जीलिंग (जीटीए) क्षेत्रों को छोड़कर इस योजना को पूरे पश्चिम बंगाल में क्यों न फिर से शुरू किया जाए।
पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार ‘‘विशेष रूप से पश्चिम बंगाल के लिए उचित निर्देश पारित करके पर्याप्त जांच और संतुलन लागू कर सकती है।’’
केंद्र सरकार को इन मुद्दों पर तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश देते हुए अदालत ने अगली सुनवाई 15 मई के लिए निर्धारित कर दी।
केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने दलील दी कि गबन के आरोप केवल चार जिलों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अन्य जिलों तक भी फैले हुए हैं।
अदालत ने कहा कि यदि केंद्रीय टीमों को अन्य जिलों में मनरेगा निधि के उपयोग के संबंध में अनियमितताएं मिलीं, तो उन निष्कर्षों को भी प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत एक लिखित नोट के अनुसार, पश्चिम बंगाल को मनरेगा धनराशि जारी करना 9 मार्च, 2022 से रोक दिया गया है।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को पूर्व के आदेश पर जवाब देने का निर्देश दिया, जिसमें पूछा गया था कि बेरोजगारी भत्ते के लिए उसे निर्देश क्यों न जारी किया जाए, क्योंकि पिछले दो वर्षों से इस योजना के तहत रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया है।
भाषा नेत्रपाल पवनेश
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