केंद्र का चार राज्यों में खारे पानी में जलीय खेती के लिए सहयोगात्मक प्रयासों का आह्वान

Ankit
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नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) केंद्र ने सोमवार को चार राज्यों – हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जलीय कृषि के लिए खारे भूमि संसाधनों का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने की रणनीति विकसित करने के लिए राज्यों, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और अन्य एजेंसियों के बीच सहयोगात्मक प्रयासों का आह्वान किया।


केंद्रीय मत्स्य सचिव अभिलक्ष लिखी की अध्यक्षता में एक वर्चुअल समीक्षा बैठक में इन चार राज्यों में खारे पानी की जलीय खेती में किसानों के सामने आने वाली जमीनी चुनौतियों और दिक्कतों के बारे में चर्चा की गई।

एक सरकारी बयान में कहा गया कि सहयोगात्मक प्रयासों के अलावा, बैठक में संभावित समूहों के विकास के लिए दिक्कतों का विश्लेषण करने और चार राज्यों के पहचाने गए 25 जिलों में खेती के क्षेत्र का विस्तार करने के साथ-साथ उत्तरी भारत में झींगा मछली की खपत को बढ़ाने पर जोर दिया गया।

चार राज्यों को तकनीकी ज्ञान का प्रसार करने, खारे जलीय खेती के लिए नए क्षेत्रों की पहचान करने और दूरगामी पहुंच-आधारित अनुसंधान करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

इसके अलावा, बैठक में मीठे पानी व अंतर्देशीय खेतों में झींगा पालन के लिए दिशानिर्देशों की समीक्षा करने और उत्तरी भारतीय राज्यों में खारे पानी के जलीय कृषि के सतत विकास के लिए एक दिशानिर्देश तैयार करने को राष्ट्रीय स्तर की समिति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

राज्यों से लाभार्थी-उन्मुख कार्य योजनाएं बनाने और विपणन अवसंरचना, रोग प्रबंधन, नियामकीय ढांचे, अनुसंधान और क्षमता निर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में लक्षित केंद्रीय सहायता के लिए केंद्रीय मंत्रालय को विशिष्ट कमियों के बारे में बताने का भी आग्रह किया गया।

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसानों ने कई चुनौतियों को उठाया जो उनके खारे पानी के जलीय कृषि कार्यों की व्यवहार्यता और स्थिरता को प्रभावित कर रही हैं।

उन्होंने उच्च स्थापना लागत, अपर्याप्त सब्सिडी कवरेज और खारे पानी के जलीय कृषि के लिए प्रतिबंधात्मक 2-हेक्टेयर क्षेत्र संबंधी सीमा के मुद्दों पर प्रकाश डाला।… इसके अलावा, किसानों ने बाजारों और कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं सहित उचित विपणन अवसंरचना की अनुपस्थिति के साथ-साथ बढ़ती लागत और अपने उत्पादों के लिए कम बाजार कीमतों की ओर इशारा किया।

बयान में कहा गया, ‘‘ये कारक निवेश पर कम लाभ दिलाते हैं, जिससे किसानों को इन बाधाओं को दूर करने और अपने जलीय कृषि प्रथाओं की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मत्स्य पालन विभाग से अधिक सहायता लेने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।’’

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लगभग 58,000 हेक्टेयर खारे क्षेत्र की पहचान की गई है, फिर भी वर्तमान में केवल 2,608 हेक्टेयर का ही उपयोग किया जा रहा है।

बैठक में, उत्तर प्रदेश के राज्य मत्स्य अधिकारियों ने मथुरा, आगरा, हाथरस और रायबरेली जैसे जिलों में 1.37 लाख हेक्टेयर को कवर करने वाले अंतर्देशीय खारे जलीय कृषि की विशाल क्षमता पर प्रकाश डाला, जिसमें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत महत्वपूर्ण पहल का समर्थन किया गया है।

राजस्थान ने चूरू और गंगानगर जैसे नमक प्रभावित जिलों में झींगा पालन में बढ़ती गतिविधियों का उल्लेख किया गया। इसमें लगभग 500 हेक्टेयर पेनियस वन्नामेई, मिल्कफिश और पर्ल स्पॉट की खेती के लिए समर्पित है। इसके अतिरिक्त, पीएमएमएसवाई के तहत चूरू में एक रोग जांच प्रयोगशाला (डायग्नोस्टिक लैब) की स्थापना की गई है।

पंजाब ने श्री मुक्तसर साहिब और फाजिल्का जैसे दक्षिण-पश्चिमी जिलों में झींगा पालन के विस्तार में अपनी उपलब्धियों को साझा किया, जिसे नीली क्रांति और पीएमएमएसवाई योजनाओं से बल मिला।

हरियाणा ने खारे पानी की जलीय कृषि में उल्लेखनीय प्रगति की, जिसने पीएमएमएसवाई के तहत 57.09 करोड़ रुपये के निवेश के साथ 13,914 टन का उत्पादन हासिल किया।

मंत्रालय ने कहा, ‘‘इन खारे पानी से प्रभावित क्षेत्रों को जलीय कृषि केंद्रों में बदलने की अपार संभावनाएं हैं।’’

भारत, वैश्विक स्तर पर संवर्धित झींगा का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के नाते, अपने समुद्री खाद्य निर्यात मूल्य का 65 प्रतिशत अकेले झींगा मछली से कमाता है।

भाषा राजेश राजेश अजय

अजय



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