कार्यकर्ताओं ने इजराइल को सैन्य उपकरण आपूर्ति करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने का आग्रह किया

Ankit
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नयी दिल्ली, एक अगस्त (भाषा) इजराइल के संबंध में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कार्यकर्ताओं ने बृहस्पतिवार को मांग की कि भारत सरकार को इजराइल को सैन्य हथियार और उपकरणों की आपूर्ति करने वाली कंपनियों के लाइसेंस रद्द करने चाहिए।


कार्यकर्ताओं ने नरसंहार रोकने को लेकर संधि के संबंध में इजराइल द्वारा दायित्वों का उल्लंघन करने के बारे में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले का जिक्र किया। लेखिका अरुंधति रॉय, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, सेवानिवृत्त राजनयिक अशोक शर्मा और अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारतीय कंपनियां इजराइल को सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर रही हैं।

करात ने कहा कि भारत ने हमेशा से फलस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त की है और इसके लिए लोगों को सरकार को जवाबदेह ठहराने की जरूरत है।

करात ने कहा, ‘‘फलस्तीन के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए हमें अपनी सरकार और उसके कार्यों को जवाबदेह ठहराना होगा, जो फलस्तीन के बच्चों और लोगों के खिलाफ जारी बर्बरतापूर्ण आतंक के अपराधियों का समर्थन करते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारत सरकार को इजराइल को सैन्य उपकरण आपूर्ति करने के सभी लाइसेंस रद्द कर देने चाहिए तथा और लाइसेंस जारी करने पर रोक लगा देनी चाहिए। भारत में निर्मित उपकरण ड्रोन, विस्फोटक भेजे जा रहे हैं और फलस्तीन के खिलाफ नरसंहार में ये इस्तेमाल किए जा रहे हैं।’’

करात ने यह भी कहा कि गाजा में हमले को धार्मिक युद्ध के रूप में दिखाया जा रहा है, जो सच नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में देखी गई सबसे भयावह घटनाओं में से एक में भागीदार है।

रॉय ने कहा कि यह भारत के लोगों की जिम्मेदारी है कि वे यह दिखाएं कि गाजा में जो कुछ हो रहा है, उसमें उनकी कोई भागीदारी नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि हथियारों का निर्यात बंद हो।’’

लेखिका रॉय ने यह भी कहा कि जहां अमेरिका इजराइल को हथियार निर्यात करके इसमें भागीदार बन रहा है, वहीं भारत इजराइल को श्रमिक भेजकर अपनी गरीबी का निर्यात कर रहा है।

रॉय ने कहा, ‘‘अमेरिका में छात्र अपनी सरकार के खिलाफ तो प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन वे इजराइल के खिलाफ़ प्रदर्शन नहीं कर सकते। जब वे इजराइल के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं, तो छात्रों और शिक्षकों को पीटा जाता है और गिरफ्तार किया जाता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह दिखाना होगा कि गाजा में जो हो रहा है, हम उसका समर्थन करने में अपनी सरकार का साथ नहीं दे रहे।’’

ज्यां द्रेज ने ‘भोजन के अधिकार अभियान’ का एक बयान पढ़ा, जिसमें कहा गया कि कई फलस्तीनी मारे गए हैं तथा घायलों को चिकित्सा सुविधाओं से वंचित रखा गया है, क्योंकि इजराइल राहत कार्यकर्ताओं, एम्बुलेंस और स्वास्थ्यकर्मियों को भी निशाना बना रहा है।

उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों के अनुमान के मुताबिक, गाजा की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रही है।

ज्यां द्रेज ने कहा, ‘‘भोजन और स्वास्थ्य सेवा के अधिकार पर यह हमला तत्काल युद्धविराम और फिलहाल इजराइल के साथ सभी तरह के सहयोग को समाप्त करने के लिए पर्याप्त कारण है। दुर्भाग्य से, भारत सरकार ने इन युद्ध अपराधों को समाप्त करने में योगदान देने के लिए कुछ भी नहीं किया है।’’

सेवानिवृत्त राजनयिक अशोक शर्मा ने कहा कि हालांकि कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है, लेकिन सोशल मीडिया पर पोस्ट में दावा किया गया है कि भारत इजराइल की मदद कर रहा है, क्योंकि उसने करगिल युद्ध के दौरान भारत को हथियार मुहैया कराए थे।

उन्होंने यह भी कहा कि हाल ही में हुए विधानसभा और आम चुनाव के दौरान गाजा के संघर्ष को ‘इस्लामोफोबिया’ को बढ़ावा देने के लिए चित्रित करने का प्रयास किया गया।

भूषण ने कहा कि भारत द्वारा इजराइल को सैन्य उपकरणों के निर्यात की अनुमति देना कानून का उल्लंघन है और इसमें शामिल अधिकारियों को दंडित किया जाना चाहिए।

कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे सरकार के साथ-साथ सभी सांसदों को एक ज्ञापन सौंपेंगे। करात ने उम्मीद जताई कि संसद में सदस्यों द्वारा यह मुद्दा उठाया जाएगा।

भाषा आशीष नेत्रपाल

नेत्रपाल



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