कर्नाटक सरकार जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेगी :शिवकुमार |

Ankit
6 Min Read


(फाइल फोटो के साथ)


बेंगलुरु, 13 अप्रैल (भाषा) कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट (जाति जनगणना) के सिलसिले में जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेगी। इस रिपोर्ट को हाल ही में राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया गया था।

उपमुख्यमंत्री की ओर से यह आश्वासन ऐसे समय में आया है, जब समाज के कुछ वर्गों ने रिपोर्ट पर आपत्ति दर्ज कराई है और विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अलावा सत्तारूढ़ कांग्रेस के भीतर भी विरोध के सुर उठ रहे हैं।

कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट शुक्रवार को मंत्रिमंडल के समक्ष रखी गई और 17 अप्रैल को होने वाली विशेष कैबिनेट बैठक में इस पर चर्चा की जाएगी।

तत्कालीन अध्यक्ष के जयप्रकाश हेगड़े के नेतृत्व वाले आयोग ने पिछले साल 29 फरवरी को मुख्यमंत्री सिद्धरमैया को रिपोर्ट सौंपी थी।

शिवकुमार ने कहा कि मंत्रिमंडल सामाजिक-आर्थिक और शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन करेगा और तथ्यों के आधार पर सभी के साथ न्याय किया जाएगा। उन्होंने रिपोर्ट के खिलाफ दिए जा रहे बयानों को “राजनीतिक” करार दिया।

उपमुख्यमंत्री ने कहा, “मुख्यमंत्री ने इसके बारे में बात की है। मैंने अभी तक रिपोर्ट नहीं देखी है, क्योंकि मैं कल बेलगावी और मंगलुरु के दौरे पर था। इस पर मंत्रिमंडल बैठक में चर्चा होनी है। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि इस पर विधानसभा में भी चर्चा की जाएगी। कोई भी फैसला जल्दबाजी में नहीं लिया जाएगा।”

बेंगलुरु के पास डोड्डाबल्लापुर में संवाददाताओं से मुखातिब उपमुख्यमंत्री ने कहा, “कुछ लोग इसके (जाति जनगणना) बारे में राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन हम तथ्यों को समझेंगे और सभी के साथ न्याय करेंगे।”

इस बीच, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बेंगलुरु में संवाददाताओं से कहा कि उन्हें नहीं पता कि रिपोर्ट में क्या है, इसलिए वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे।

खरगे ने कहा, “मुझे नहीं पता, क्योंकि मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि मंत्रिमंडल बैठक में क्या चर्चा होगी या रिपोर्ट में क्या है। अगर मुझे रिपोर्ट मिलती है, तो मैं कुछ कह सकता हूं। या अगर 17 अप्रैल की मंत्रिमंडल बैठक में कोई स्पष्ट निर्णय लिया जाता है, तो मैं उस पर प्रतिक्रिया दे सकता हूं।”

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, कर्नाटक में 2015 में किए गए सर्वेक्षण में शामिल कुल 5.98 करोड़ नागरिकों में से लगभग 70 फीसदी यानी 4.16 करोड़ विभिन्न ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं।

सूत्रों ने बताया कि आयोग ने ओबीसी कोटा को मौजूदा 32 फीसदी से बढ़ाकर 51 प्रतिशत करने की सिफारिश की है।

कर्नाटक में अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय को मौजूदा समय में 17 फीसदी, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय को सात प्रतिशत आरक्षण हासिल है। ओबीसी समुदाय को 51 प्रतिशत आरक्षण देने में राज्य में कुल आरक्षण 75 फीसदी हो जाएगा।

आधिकारिक सूत्रों ने रिपोर्ट के हवाले से कहा कि कर्नाटक में एसी और एसटी समुदाय मिलकर सबसे बड़ा सामाजिक समूह हैं, जिनकी कुल जनसंख्या लगभग 1.52 करोड़ है।

सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट से ओबीसी समुदाय का जातिवार ब्योरा अभी पता नहीं चल सका है, जबकि इसमें ओबीसी की श्रेणी-2बी के तहत आने वाले मुसलमानों की आबादी लगभग 75.25 लाख और सामान्य वर्ग की जनसंख्या करीब 29.74 लाख बताई गई है।

कर्नाटक के दो प्रमुख समुदाय-वोक्कालिगा और लिंगायत-इस सर्वेक्षण को “अवैज्ञानिक” बताते हुए इसे खारिज करने और नया सर्वेक्षण कराने की मांग कर रहे हैं।

कर्नाटक के गृह मंत्री जी परमेश्वर ने कहा कि अगली मंत्रिमंडल बैठक में रिपोर्ट पर चर्चा के बाद इसे स्वीकार या अस्वीकार किया जा सकता है।

चूंकि मुख्यमंत्री पहले ही कह चुके हैं कि रिपोर्ट 95 प्रतिशत सही है, इसलिए इसे स्वीकार किए जाने की संभावना अधिक है।

लिंगायत समुदाय से जुड़े मंत्री एमबी पाटिल ने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान लिंगायतों के बीच कुछ उप-संप्रदायों ने ओबीसी (2ए) के आरक्षण मैट्रिक्स के तहत लाभ के लिए खुद को हिंदू-बनाजिगा, हिंदू-गनिगा, हिंदू-सदारा आदि नाम दिए हैं, यदि उन सभी को गिना जाए तो लिंगायत की आबादी एक करोड़ से अधिक है।

उन्होंने कहा, “हम इस पर चर्चा करेंगे। हम देखेंगे कि क्या सभी वीरशैव-लिंगायतों को एक ही श्रेणी में लाने के उपाय हैं….लेकिन मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि लिंगायतों की आबादी 75 लाख नहीं, बल्कि एक करोड़ से अधिक है।”

विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने आरोप लगाया कि सर्वेक्षण जातियों के बीच विभाजन पैदा करता है। उन्होंने कहा कि इस रिपोर्ट में वोक्कालिगों की विभिन्न उपजातियों को विभाजित किया गया है और लिंगायतों के मामले में भी यही स्थिति है।

अशोक ने कहा, “यह एक ऐसी रिपोर्ट है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। अगर सरकार में थोड़ी-सी भी समझ है, तो उसे रिपोर्ट वापस लेनी चाहिए और हर घर से डेटा एकत्र करके वैज्ञानिक सर्वेक्षण करना चाहिए और एक नयी रिपोर्ट मांगनी चाहिए।”

उन्होंने आरोप लगाया कि सिद्धरमैया विभाजन पैदा करने के मामले में सबसे आगे हैं।

भाषा पारुल नरेश

नरेश



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *