‘एक देश-एक चुनाव’ लोकतंत्र और संघवाद की मूल भावना को कमजोर करता है : भाकपा-माले |

Ankit
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पटना, 18 सितंबर (भाषा) बिहार में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की सहयोगी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) ने केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा ‘एक देश-एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने पर केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की आलोचना करते हुए बुधवार को कहा कि यह निर्णय लोकतंत्र और संघवाद की मूल भावना को कमजोर करता है।


भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव सुनिश्चित करने का केंद्र सरकार का कदम संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार करने और लोकतंत्र और संघवाद की मूल भावना को कमजोर करने का प्रयास है। यह कदम पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है।”

उन्होंने कहा, “एक देश-एक चुनाव’ के नाम पर भाजपा राजनीतिक घड़ी को पीछे धकेलना चाहती है और संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से राजनीति में एक नया नियम लागू करना चाहती है।”

इससे पहले जुलाई, 2023 में भाकपा (माले) लिबरेशन ने ‘एक देश-एक चुनाव’ पर विधि आयोग के पत्र के जवाब में इस विचार को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था।

भट्टाचार्य ने कहा कि सत्तारूढ़ दल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के अनुरूप संविधान में संशोधन नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, “विधानसभा और संसद के चुनावों के अपने विशिष्ट संदर्भ होते हैं, जैसे कि पंचायत और नगरपालिका के चुनाव होते हैं। तार्किक विचारों के लिए चुनावों को एक साथ मिलाने का मतलब होगा विधानसभा चुनावों से उनके स्वायत्त क्षेत्र को छीनना और उन्हें केंद्रीय संदर्भ के अधीन करना।”

भट्टाचार्य ने कहा कि यह धारणा कि एक साथ चुनाव कराने से तार्किक सुविधा और वित्तीय बचत होगी, चुनाव खर्च या तार्किक व्यवस्था के किसी भी विश्वसनीय अध्ययन या विश्लेषण द्वारा समर्थित नहीं है।

भाषा अनवर जितेंद्र

जितेंद्र



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