आरोपी को गिरफ्तारी का आधार बताना संवैधानिक आवश्यकता: उच्चतम न्यायालय |

Ankit
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नयी दिल्ली, सात फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि किसी आरोपी को गिरफ्तारी का आधार बताना कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है।


न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति नोंगमईकापम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा आदेश का पालन न करना संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

न्यायालय ने कहा, ‘‘गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित करने की आवश्यकता औपचारिकता नहीं, बल्कि अनिवार्य संवैधानिक आवश्यकता है। अनुच्छेद 22 को संविधान के भाग तीन में मौलिक अधिकारों के शीर्षक के तहत शामिल किया गया है। इस प्रकार, गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए प्रत्येक व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि उसे जल्द से जल्द गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित किया जाए।’’

पीठ ने वित्तीय धोखाधड़ी के एक मामले में विहान कुमार की गिरफ्तारी को असंवैधानिक और संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना। कुमार की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अधिवक्ता विशाल गोसाईं ने पैरवी की।

गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए शीर्ष अदालत ने कुमार की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, तथा आपराधिक कानून में प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के महत्व को रेखांकित किया।

न्यायमूर्ति ओका ने फैसले में कहा, ‘‘यदि गिरफ्तारी के बाद यथाशीघ्र गिरफ्तारी के आधार की जानकारी नहीं दी जाती है, तो यह अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को प्रदत्त मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। यह गिरफ्तार व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित करने के समान होगा…।’’

न्यायमूर्ति सिंह ने न्यायमूर्ति ओका से सहमति जताते हुए अनुच्छेद 22 के महत्व और आरोपी के अधिकार को रेखांकित करते हुए कुछ पृष्ठ लिखे। न्यायमूर्ति ओका ने फैसले में कहा है, ‘‘गिरफ्तारी के आधार के बारे में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता अनुच्छेद 22(1) की अनिवार्य आवश्यकता है।’’

फैसले में अनुच्छेद 21 का भी उल्लेख किया गया और कहा गया कि कानूनी प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया में अनुच्छेद 22(1) में दी गई व्यवस्था भी शामिल है। इसलिए, जब किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जाता है और गिरफ्तारी के बाद उसे गिरफ्तारी के आधार के बारे में जल्द से जल्द जानकारी नहीं दी जाती है, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उसके मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।’’

अदालत ने मामले में उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की भी आलोचना करते हुए कहा, ‘‘उच्च न्यायालय सहित सभी अदालतों का कर्तव्य है कि वे मौलिक अधिकारों को बनाए रखें। जब अनुच्छेद 22(1) के तहत मौलिक अधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया गया, तो उच्च न्यायालय का यह कर्तव्य है कि वह उक्त विवाद पर विचार करे और इस पर निर्णय दे।’’

इसे अनुच्छेद 21 के तहत अपीलकर्ता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए अदालत ने कहा, ‘‘इस फैसले से पहले हमें पुलिस द्वारा अपीलकर्ता के साथ किए गए चौंकाने वाले व्यवहार का उल्लेख करना चाहिए। उसे हथकड़ी लगाकर अस्पताल ले जाया गया और अस्पताल के बिस्तर पर जंजीरों से बांध दिया गया।’’

अदालत ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि वह पुलिस को दिशा-निर्देश और विभागीय निर्देश जारी करे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अस्पताल के बिस्तर पर पड़े आरोपी को हथकड़ी लगाने और बांधने की घटना दोबारा न हो।

भाषा आशीष दिलीप

दिलीप



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