आपातकाल गलती थी लेकिन देश में आज के ‘अघोषित’ आपातकाल की कोई समयसीमा नहीं: सिंघवी |

Ankit
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नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने 1975 में देश में थोपे गए आपातकाल को एक गलती करार देते हुए सोमवार को कहा कि यह 18 महीने तक रहा लेकिन आज देश में ‘‘अघोषित आपातकाल’’ का दौर है, जिसकी कोई समयसीमा नहीं है।


‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली’ यात्रा पर राज्यसभा में जारी चर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने 1975 में आपातकाल को निश्चित समयसीमा के लिए संवैधानिक विकृति करार दिया और कहा कि मौजूदा अघोषित आपातकाल की कोई समयसीमा नहीं है तथा यह बेरोकटोक जारी है।

उन्होंने कहा, ‘‘आपातकाल की बात करें तो गलतियां हुई थीं। कांग्रेस भी पहले यह कह चुकी है। अब 90 प्रतिशत भाषण 1950 के पहले संविधान संशोधन से शुरू होते हैं। आज जो विकृतियां सामने आई हैं, उनका क्या होगा… उत्तर क्या है? अगर नेहरू ने गलती की है, तो हम भी करेंगे, क्या यही तरीका है?’’

सिंघवी ने कहा कि यह तर्कसंगत नहीं है।

उन्होंने कहा कि 1975 में आपातकाल 18 महीने चला था और लोगों ने अंततः इंदिरा गांधी के नेतृत्व में विश्वास जताया।

सिंघवी ने कहा, ‘‘वह आपातकाल एक विकृति था, जिसका संविधान ने भी समर्थन किया। दोष थे, लेकिन यह समाप्त हो गया। इस अघोषित आपातकाल के लिए क्या समयसीमा है जो अभी है? इसे खत्म करने के लिए संविधान क्या सुरक्षा कवच है, कुछ भी नहीं है, शून्य।’’

केंद्र सरकार पर तीखा हमला करते हुए उन्होंने कहा कि देश में भय का माहौल है।

सिंघवी ने कहा, ‘‘हमारी संप्रभुता का पवित्र ग्रंथ संविधान खतरे में है, लोकतंत्र के स्तंभ कांप रहे हैं क्योंकि निरंकुशता हमारे सत्ता के मंदिरों में घुस रही है, धर्मनिरपेक्षता की पवित्रता को तार-तार किया जा रहा है और संघवाद खंडित हो रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम एक ऐसा समय देख रहे हैं जहां संस्थाएं अक्षम हो रही हैं, असहमति को बदनाम किया जा रहा है और सच का गला घोंटा जा रहा है। लोकतंत्र के संरक्षक इसके षड्यंत्रकारी बन गए हैं, स्वतंत्रता के रक्षक अब इसके शिकारी हैं।’’

सिंघवी ने कहा कि गांधी-नेहरू-पटेल ने जरूर कुछ सही किया होगा तभी तो भारत में लोकतंत्र मजबूत बना रहा जबकि कई अन्य देशों में यह लड़खड़ा गया।

उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ काम कर रही है।

कुछ राज्यों में इमारतों पर बुलडोजर चलाए जाने का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 95 फीसदी से ज्यादा कार्रवाई एक खास समुदाय के खिलाफ हुई है।

सिंघवी ने कहा कि यह बुलडोजर की राजनीति है और केंद्र सरकार ने इसे इतना महिमामंडित किया है कि अब मुख्यमंत्री एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

उन्होंने कुछ राज्यपालों पर भी हमला किया जो उनके अनुसार सहकारी संघवाद के सिद्धांत के खिलाफ काम कर रहे हैं।

सिंघवी ने कहा, ‘‘… चुनी हुई सरकार को गलतियां करने का हक है… राज्यपाल सुपर सीएम नहीं हैं… आज हमारे पास सुपर सीएम हैं।’’

उन्होंने यह भी कहा कि नौकरशाही को संविधान का एक स्तंभ होना चाहिए, पर उस पर भी हमला हो रहा है।

कांग्रेस नेता ने कहा कि आज नौकरशाही में दासता और वफादारी सर्वोपरि हो गए हैं और जो ऐसा नहीं करता उसे प्रताड़ित किया जाता है।

उन्होंने मीडिया पर भी सवाल उठाए।

भारतीय जनता पार्टी के घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि संविधान को उन लोगों ने बचाया जिन्होंने कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

शिवसेना के मिलिंद देवड़ा ने कहा कि राजनीतिक दलों को तुच्छ राजनीति से ऊपर उठना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए संविधान तथा लोकतंत्र को और मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

विरोधी दलों पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि यदि राजनीतिक दल अपने भीतर लोकतंत्र नहीं ला सकते तो वे लोकतंत्र और संविधान को कैसे मजबूत कर सकते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘वे बाजार के एकाधिकार के बारे में बहुत मुखर रूप से बात करते हैं, लेकिन अपनी पार्टियों के भीतर एकाधिकार का मुकाबला नहीं कर सकते।’’

सिंघवी ने कहा, ‘‘हमें अपने राजनीतिक दलों में लोकतंत्र लाना चाहिए। मैं गर्व से कहना चाहता हूं कि मेरे नेता एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में लोकतंत्र बहाल किया। उन्होंने सामंतवाद को खत्म किया और लोकतंत्र को बहाल किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक और फर्जी या असुविधाजनक सच जो मैं उठाना चाहता हूं वह ईवीएम के संबंध में है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री ने… कुछ लोग जीतने के बाद ईवीएम की तारीफ करते हैं, लेकिन जब वे हार जाते हैं तो कहते हैं कि ईवीएम में समस्या है।’’

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र नेत्रपाल

नेत्रपाल



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