नयी दिल्ली, 14 अप्रैल (भाषा) भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार किया था कि जब उन्होंने बी.आर. आंबेडकर को मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया तो कुछ लोग आश्चर्यचकित हो गए थे, क्योंकि यह सोचा गया था कि उनकी “सामान्य गतिविधियां सत्ता पक्ष जैसी न होकर विपक्ष सरीखी थीं”।
नेहरू का हालांकि मानना था कि आंबेडकर ने संविधान निर्माण में बहुत रचनात्मक भूमिका निभाई थी और वह सरकारी गतिविधियों में भी ऐसा करना जारी रख सकते हैं।
छह दिसंबर 1956 को आंबेडकर के निधन पर लोकसभा में अपनी श्रद्धांजलि देते हुए नेहरू ने कहा था कि आंबेडकर को अक्सर संविधान के निर्माताओं में से एक कहा जाता है और “इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान निर्माण में उनसे अधिक ध्यान किसी ने नहीं दिया और उनसे ज्यादा परेशानी किसी ने नहीं झेली।”
उनके (आंबेडकर के) निधन के दिन लोकसभा को संबोधित करते हुए नेहरू ने कहा था कि आंबेडकर को सबसे अधिक “हिंदू समाज की सभी दमनकारी विशेषताओं के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक के रूप में” याद किया जाएगा।
अगस्त 1947 से अक्टूबर 1951 तक भारत के पहले कानून मंत्री रहे आंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया क्योंकि हिंदू संहिता विधेयक को एक विधेयक के रूप में विचार और पारित करने के लिए नहीं लिया गया था। अंततः इसे 1955-58 के दौरान चार अलग-अलग विधेयकों के रूप में लिया गया और पारित किया गया।
नेहरू ने कहा, “मुझे सदन को डॉ. आंबेडकर की मृत्यु का दुखद समाचार देना है। मुझे लगता है कि अभी दो दिन पहले, परसों ही, वह दूसरे सदन में उपस्थित थे, जिसके वह सदस्य थे। इसलिए, आज उनकी मृत्यु की खबर हम सभी के लिए एक सदमा बनकर आई, क्योंकि हमें इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि ऐसी घटना इतनी जल्दी घट जाएगी।”
उन्होंने कहा, “जैसा कि इस सदन का प्रत्येक सदस्य जानता है, डॉ. आंबेडकर ने भारत के संविधान के निर्माण में, तत्पश्चात संविधान सभा के विधायी भाग में तथा तत्पश्चात अनंतिम संसद में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।”
उन्होंने कहा, “इसके बाद वह कुछ समय तक संसद सदस्य नहीं रहे। फिर वह राज्यसभा में वापस आ गए, जिसके वह वर्तमान सदस्य थे।”
नेहरू ने कहा कि उन्हें अक्सर हमारे संविधान के निर्माताओं में से एक कहा जाता है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान निर्माण में आंबेडकर से अधिक किसी ने ध्यान नहीं दिया और परेशानी नहीं सही।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें हिंदू कानून सुधार के प्रश्न पर उनकी गहरी रूचि और उठाए गए कष्ट के लिए भी याद किया जाएगा।
नेहरू ने कहा, “मुझे खुशी है कि उन्होंने उस सुधार को बहुत बड़े पैमाने पर लागू होते देखा, शायद उस विशाल ग्रंथ के रूप में नहीं जिसे उन्होंने स्वयं तैयार किया था, बल्कि अलग-अलग हिस्सों में। लेकिन, मैं कल्पना करता हूं कि जिस तरह से उन्हें सबसे ज्यादा याद किया जाएगा, वह हिंदू समाज की सभी दमनकारी विशेषताओं के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक के रूप में होगा”।
तत्कालीन प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि आंबेडकर ने कभी-कभी ऐसी भाषा का प्रयोग किया जिससे लोगों को ठेस पहुंची और कभी-कभी उन्होंने ऐसी बातें कह दीं जो शायद पूरी तरह से उचित नहीं थीं।
उन्होंने कहा, “लेकिन, हमें यह भूल जाना चाहिए। मुख्य बात यह थी कि उन्होंने उस चीज के खिलाफ विद्रोह किया जिसके खिलाफ सभी को विद्रोह करना चाहिए और हमने वास्तव में विभिन्न स्तरों पर विद्रोह किया है। यह संसद स्वयं अपने द्वारा बनाए गए कानून में अतीत की उन प्रथाओं या विरासतों का खंडन करती है, जिनके कारण हमारे लोगों का एक बड़ा वर्ग अपने सामान्य अधिकारों का आनंद लेने से वंचित रहा।”
नेहरू ने कहा, “जब मैं डॉ. आंबेडकर के बारे में सोचता हूं तो मेरे दिमाग में कई बातें आती हैं, क्योंकि वे एक बेहद विवादास्पद व्यक्ति थे। वे नरम वाणी वाले व्यक्ति नहीं थे। लेकिन, इन सबके पीछे एक शक्तिशाली प्रतिक्रिया और विद्रोह का कार्य था, उस चीज के खिलाफ जिसने हमारे समाज को इतने लंबे समय तक दबा कर रखा था।”
उन्होंने कहा, “सौभाग्य से, उस विद्रोह को समर्थन मिला, शायद ठीक उसी तरह नहीं जैसा वह चाहते थे, लेकिन काफी हद तक, उस विद्रोह के मूल सिद्धांत को संसद का समर्थन प्राप्त था और मेरा मानना है कि यहां प्रतिनिधित्व करने वाले प्रत्येक समूह और पार्टी का समर्थन प्राप्त था।”
नेहरू ने सार्वजनिक जीवन में आंबेडकर के योगदान के लिए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, “हमने अपनी सार्वजनिक गतिविधियों और विधायी गतिविधियों दोनों में हिंदू समाज पर लगे उस कलंक को हटाने का भरसक प्रयास किया। इसे कानून के जरिए पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रथा ज्यादा गहरी है और मुझे डर है कि यह देश के कई हिस्सों में अब भी जारी है, भले ही इसे अवैध माना जाता हो। यह सच है। लेकिन, मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह ऐसी चीज है जो अपने अंतिम चरण में है और इसे खत्म होने में थोड़ा समय लग सकता है।”
नेहरू ने कहा कि आंबेडकर अपने तरीके से प्रमुख बन गए और उस विद्रोह के सबसे प्रमुख प्रतीक बन गए।
उन्होंने कहा, “मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि, चाहे हम कई मामलों में उनसे सहमत हों या नहीं, उनकी अटलता, दृढ़ता और, यदि मैं कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग करूं, तो इन सबके प्रति उनके विरोध की उग्रता ने लोगों के मन को जागृत रखा और उन्हें उन मामलों के बारे में लापरवाह नहीं होने दिया जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता था, और हमारे देश में उन समूहों को जागृत करने में मदद की जिन्होंने अतीत में इतने लंबे समय तक कष्ट झेले थे।”
उन्होंने कहा कि इसलिए यह बहुत दुःख की बात है कि भारत में शोषितों और वंचितों के ऐसे प्रमुख समर्थक तथा संसद की गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का निधन हो गया।
उन्होंने कहा, “मैंने उनके बारे में सुना था और बेशक, उनसे पहले भी कई मौकों पर मुलाकात हुई थी। लेकिन, मैं उनसे किसी भी तरह के अंतरंग संपर्क में नहीं आया था। संविधान सभा के समय ही मैं उन्हें थोड़ा बेहतर तरीके से जान पाया।”
नेहरू ने कहा, “मैंने उन्हें सरकार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। कुछ लोगों को आश्चर्य हुआ कि मैंने ऐसा क्यों किया, क्योंकि लोगों का मानना था कि उनकी सामान्य गतिविधियां सत्ता पक्ष के सदस्य के बजाय विपक्ष सरीखी थीं…।”
भाषा प्रशांत माधव
माधव