अपराध सामाजिक भय पैदा करता है, इसे कायम रहने देना अन्यायपूर्ण होगा: उच्चतम न्यायालय |

Ankit
2 Min Read


नयी दिल्ली, छह जनवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि अपराध ने सामाजिक भय पैदा किया है और अगर ऐसी स्थिति को समाज में बने रहने दिया गया तो यह अन्यायपूर्ण होगा।


न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने कहा कि प्रत्येक सभ्य समाज में, आपराधिक प्रशासनिक प्रणाली का उद्देश्य समाज में विश्वास और एकजुटता पैदा करने के अलावा व्यक्तिगत गरिमा की रक्षा करना और सामाजिक स्थिरता और व्यवस्था को बहाल करना रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘अपराध सामाजिक भय की भावना पैदा करता है और यह सामाजिक विवेक पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह असमान और अन्यायपूर्ण है… अदालतों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में एक तरफ अभियुक्तों के हित और दूसरी तरफ राज्य/समाज के बीच संतुलन बनाने का काम सौंपा गया है।’’

पीठ ने ये टिप्पणियां 2002 के एक हत्या मामले में पांच दोषियों की अपील को खारिज करते हुए कीं।

दोषियों के वकील ने तर्क दिया कि जांच रिपोर्ट ठीक से नहीं बनाई गई थी और चश्मदीदों ने केवल दुश्मनी के कारण आरोपी व्यक्तियों को फंसाने के लिए बयान दोहराए।

अदालत ने कहा, हालांकि गवाहों के बयानों में असंगतता थी लेकिन इससे उनकी गवाही अविश्वसनीय नहीं होगी।

पीठ ने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि सुजीश का शव दूसरे पीड़ित सुनील के शव के स्थान से थोड़ी दूर पर मिला था, यह अभियोजन के पूरे मामले को खारिज करने का एकमात्र और निर्णायक कारक नहीं हो सकता है।’’

एक मार्च 2002 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस)/विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी)ने बंद का आह्वान किया था। विरोध प्रदर्शन के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और आरएसएस के सदस्यों के बीच झड़प हुई थी।

भाषा संतोष सुभाष

सुभाष



Share This Article
Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *