अनुशासन, शिक्षा के नाम पर बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता : छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय |

Ankit
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बिलासपुर, तीन अगस्त (भाषा) छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक शिक्षिका की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अनुशासन और शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता की श्रेणी में आता है।


राज्य के अंबिकापुर शहर में एक स्कूली छात्रा को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के मामले में आरोपी शिक्षिका ने आरोपपत्र निरस्त करने का अनुरोध करने को लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता रजत अग्रवाल ने बताया कि उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित दो न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त उसके जीवन के अधिकार के अनुरूप नहीं है।

पीठ ने कहा कि अनुशासन और शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे के साथ शारीरिक हिंसा करना क्रूरता की श्रेणी में आता है। बच्चे बहुमूल्य राष्ट्रीय धरोहर है, उनका पालन-पोषण और देखभाल पूरी कोमलता के साथ किया जाना चाहिए, न कि क्रूरता के साथ।

न्यायालय ने कहा कि बच्चे को सुधारने के लिए शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता।

अग्रवाल ने बताया कि अंबिकापुर के कार्मेल कान्वेंट स्कूल की नियमित शिक्षिका सिस्टर मर्सी एलिाबेथ जोस के खिलाफ अंबिकापुर के मणिपुर थाने में शिकायत दर्ज कराई गई थी।

शिकायत में शिक्षिका मर्सी पर छठवीं कक्षा की छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।

उन्होंने बताया कि पुलिस ने तत्कालीन भारतीय दंड विधान की धारा 305 के तहत प्राथमिकी दर्ज की थी। मामले की जांच के बाद पुलिस ने अदालत में आरोप पत्र दायर किया था।

अधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता शिक्षिका ने उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर करते हुए अपने खिलाफ पेश किए गए आरोप पत्र को निरस्त करने की मांग की थी।

उच्च न्यायालय में बीते सोमवार को मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और जस्टिस रविन्द्र कुमार अग्रवाल की पीठ ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ आक्षेपित आरोप पत्र और प्राथमिकी को रद्द करने का कोई आधार नहीं पाया और याचिका को खारिज कर दिया।

भाषा सं संजीव जितेंद्र

जितेंद्र



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