पुणे, छह मार्च (भाषा) पुणे की एक अदालत ने बृहस्पतिवार को सार्वजनिक और सोशल मीडिया पर दिए गए उन बयानों पर रोक लगाने के अनुरोध वाली एक अर्जी खारिज कर दी, जिनसे स्वारगेट बस दुष्कर्म पीड़िता के “चरित्र हनन” की आशंका हो सकती है।
एक वकील ने आवेदन दायर कर दावा किया था कि पिछले महीने शहर के व्यस्त बस अड्डे पर राज्य परिवहन की बस के अंदर कथित रूप से दुष्कर्म की शिकार हुई महिला को बदनाम करने के लिए एक फर्जी कहानी फैलाई जा रही है।
एक हिस्ट्रीशीटर पर महिला से दुष्कर्म का आरोप है।
वकील असीम सरोदे ने अदालत से सार्वजनिक और सोशल मीडिया पर ऐसे बयानों पर रोक लगाने का आग्रह किया, जिससे “महिला के चरित्र पर आघात हो सकता है”।
न्यायिक मजिस्ट्रेट (प्रथम श्रेणी) न्यायाधीश टी.एस. गाइगोले ने आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अदालत ऐसा आदेश जारी करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी नहीं है।
न्यायाधीश ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 163 के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट या उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या कोई अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जिसे राज्य सरकार द्वारा विशेष रूप से अधिकार दिया गया हो, “उपद्रव या आशंका वाले खतरे के तत्काल मामलों” में आदेश जारी कर सकता है।
न्यायाधीश ने कहा, “यह अदालत उक्त प्राधिकारी नहीं है, जिसे बीएनएसएस की धारा 163 के तहत उपद्रव के तत्काल मामलों में आदेश जारी करने का अधिकार प्राप्त है और इसलिए यह आवेदन स्वीकार्य नहीं है।”
बाद में सरोदे ने कहा कि चूंकि जिला कलेक्टर के पास इस तरह का निरोधक आदेश जारी करने का अधिकार है, इसलिए पुणे कलेक्टर जितेंद्र डूडी को एक आवेदन प्रस्तुत किया गया है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वाली 26 वर्षीय महिला के साथ 25 फरवरी की सुबह स्वारगेट डिपो में खड़ी राज्य परिवहन बस के अंदर दत्तात्रेय गाडे (37) द्वारा कथित तौर पर बलात्कार किया गया था। गाडे पर आधा दर्जन मामले दर्ज हैं।
भाषा प्रशांत माधव
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