नयी दिल्ली, 20 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह दिसंबर 2019 में जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा से संबंधित मामले में कुछ अर्जियों को शामिल करने की याचिका पर फैसला करने से पहले पुलिस का पक्ष भी सुनेगा।
न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि कार्यवाही में एक प्रक्रिया होती है जिसके अनुसार दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश पारित किया जा सकता है।
पीठ ने कहा कि पुलिस ने याचिका में अनुरोधों में संशोधन करने की अर्जी पर गंभीर आपत्तियां उठाई थीं।
इसने कहा, ‘‘जब तक हम संशोधित अर्जी को अनुमति नहीं देते, हम प्राथमिकी दर्ज करने के मामले पर सुनवाई नहीं कर सकते। सबसे पहले हमें इस संशोधन वाली अर्जी को मंजूरी देनी होगी। इस अर्जी को अनुमति देने के लिए सरकार द्वारा गंभीर आपत्ति जताई गई है और कोई भी आदेश पारित करने से पहले उस पक्ष को सुना जाना चाहिए।’’
अदालत ने कहा कि यदि संशोधित अर्जी को मंजूरी दी जाती है, तभी वह याचिकाकर्ताओं को प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध पर बहस करने की अनुमति देगी।
हिंसा के बाद उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें चिकित्सा उपचार, मुआवजा देने और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने को लेकर एक विशेष जांच दल (एसआईटी), जांच आयोग या तथ्यान्वेषण समिति गठित करने के निर्देश देने की मांग की गई।
याचिकाकर्ताओं में वकील, जामिया के छात्र, ओखला क्षेत्र के निवासी (जहां विश्वविद्यालय स्थित है) तथा संसद के सामने स्थित जामा मस्जिद के इमाम शामिल हैं।
एक याचिका में याचिकाकर्ताओं ने एक संशोधन अर्जी दायर की थी, जिसमें केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया कि ‘‘इस याचिका को पुलिस के लिए सूचना के रूप में माना जाए तथा पुलिस द्वारा किए गए अपराधों के संबंध में तत्काल प्राथमिकी दर्ज की जाए।’’
अदालत ने सुनवाई 24 अप्रैल के लिए तय की है।
अदालत दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी प्रदर्शनों के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भड़की हिंसा से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
भाषा आशीष नेत्रपाल
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